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हिन्दी विकिपिडिया की विकास यात्रा : ५५००० लेख

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आज हिन्दी विकिपिडिया ने ५५००० लेखों का आंकड़ा भी पार कर लिया। यह कम नहीं है ; फिर भी हमे अभी बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। सभी लोग ठान लें कि दो-चार लेखों का योगदान अवश्य करेंगे तो इसे लाखों में पहुँचते देर नहीं लगेगी। आइये, अपने-अपने विशेषज्ञता के क्षेत्र में कुछ लेखों का योगदान करें।

हिन्दी हिथार्थ

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  1. हिन्दीसेवी संस्थाएँ
  2. भारतीय भाषों के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता -- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, रेशिमबाग नागपुर द्वारा फाल्गुन कृष्ण 8-9 युगाब्द 5119 (9-11 मार्च, 2018) को पारित प्रस्ताव
  3. रवीन्द्रनाथ टैगोर के चिंतन में मातृभाषा और समग्र विकास एवं सृजन के अंतःसंबंधों की खोज (प्रभात कुमार , शोध छात्र, शिक्षा विभाग, विश्व-भारती)
  4. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी (लेखक - ऋषिकेश राय)
  5. अंग्रेजी ने बनाए 'नए वंचित'और 'नए ब्राह्मण' - मधु पूर्णिमा किश्वर, संपादक, मानुषी
  6. अंग्रेजी के ताले में बंद भारत का विकास - मधु पूर्णिमा किश्वर, संपादक, मानुषी
  7. हिन्दी की समस्या, अर्थात भारत की समस्या - डा राम चौधरी, प्रोफेसर भौतिक विज्ञान, न्यूयार्क स्टेट युनिर्वसिटी
  8. भारत की भीषण भाषा-समस्या और उसके सम्भावित समाधान - अजय कुलश्रेष्ठ, कैलिफोर्निया, यू०एस०ए०
  9. हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास - रवीन्द्र प्रभात, हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर, भारत
  10. हिन्दी ब्लॉगिंग: अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति - अविनाश वाचस्पति/रवीन्द्र प्रभात, हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर, भारत
  11. हिन्दी के हत्यारे - प्रभु जोशी
  12. हिन्दी के हत्यारे - 2 - प्रभु जोशी
  13. पराई भाषा से नहीं मिटेगा दिलतों का दर्द
  14. भारतीय राज सत्ता और हिंदी - रविभूषण
  15. भाषा और देश
  16. भूमंडलीकरण की चुनौतियाँ : संचार माध्यम और हिंदी का संदर्भ
  17. वर्तमान युग का यक्ष प्रश्न - राष्ट्रभाषा समाधान गांधी-दर्शन में
  18. विदेशों में अंग्रेज़ी - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
  19. अँगरेजी की चक्की में क्यों पिसें बच्चे? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
  20. संविधान में हिंदी - डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी
  21. हिंदी, संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बन कर रहेगी
  22. हिन्दी में वैज्ञानिक साहित्य सृजन की स्थिति
  23. हिन्दी के भगीरथ - महामना पं मदन मोहन मालवीय : श्री जगत प्रकाश चतुर्वेदी
  24. विदेशों में हिन्दी का बढ़ता प्रभाव - राकेश शर्मा निशीथ
  25. हिन्दी जानने वालों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक
  26. सक्षम है हिंदी की नई पीढ़ी - श्री रवींद्र कालिया, भारतीय ज्ञानपीठ के कार्यकारी निदेशक
  27. हिन्दी, युवा पीढ़ी और ज्ञान-विज्ञान
  28. हिंदी के अनुकूल होती जा रही है आईटी की दुनिया - बालेन्दु दाधीच
  29. जरूरी है भाषाओं को मरने से बचाना - अमर उजाला
  30. हिन्दी राष्ट्रीय सम्पर्क की भाषा बन चुकी है - प्रभा साक्षी
  31. भारत के सम्मान हेतु मैं इस विधेयक का विरोध करता हूँ - डॉ. राम कुमार वर्मा
  32. हिरण पर क्यों लादें घास? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
  33. मुस्लिम शासन में नागरी की तरक्की पर एक नजर - नागरी संगम
  34. देवनागरी की तरक्की में विदेशियों का भी हाथ है - गगनांचल
  35. राष्ट्रभाषा : मनन, मंथन, मंतव्य (संजय भारद्वाज)
  36. आर्य-द्रविड़ भाषाओं के विभाजन की असलियत (डॉ0 परमानंद पांचाल ; नई दिल्ली)
  37. हिन्दी को रोमन लिपि की कोई जरूरत नहीं (डॉं- परमानंद पांचाल ; नई दिल्ली ; जुलाई 2010)
  38. न्यायपालिका में भारतीय भाषाएं : विधिमंत्रालय की भूमिका ( ब्रजकिशोर शर्मा ; पूर्व अपर सचिव, भारत सरकार )
  39. आम आदमी की भाषा न्यायालय से दूर क्यों? ( शिवकुमार शर्मा ; पूर्व न्यायाधीश व राष्ट्रीय विधि आयोग के सदस्य )
  40. भारतीय भाषाओं के विरुद्ध षड्यंत्र (ब्रजकिशोर शर्मा, पूर्व अपर सचिव, भारत सरकार)
  41. आजाद भारत की गुलामी (श्री वेदप्रताप वैदिक)
  42. अंग्रेजी का मूल स्वरूप कायम है, मगर हिन्दी का? (गोविन्द सिंह)
  43. सूचना प्रौद्योगिकी और नागरी का मानकीकरण (नागरी संगम)
  44. हिन्दी का वर्तमान और भविष्य की दृष्टि‎ (डॉ ओम विकास)
  45. दोषी कौन? मैकाले या हम? (डॉ. रवीन्द्र अग्निहोत्री)
  46. एक अरब पर दबदबा जमाए दो करोड़ अंग्रेजीदां (मार्क टली)
  47. भारत में सभी शिक्षा का माध्यम हिन्दी या क्षेत्रीय भाषाएं होना चाहिए (ईशुमीत)
  48. अंग्रेजी के खिलाफ़ जब बोले सेठ गोविन्ददास
  49. संख्याबल को अनदेखा नहीं कर सकती तकनीक (बालेन्दु शर्मा 'दधीच')
  50. जब भी जरूरत पड़ी, देश को एकजुट किया हिन्दी ने (विश्वनाथ त्रिपाठी)
  51. अंग्रेजी और हिंदी का भेद आर्थिक स्तर पर है (विश्वनाथ त्रिपाठी)
  52. क्या हिंदी में अंग्रेजी शब्दों को धड़ल्ले से आने दें? (विश्वनाथ त्रिपाठी)
  53. प्रशासन के लिए अंग्रेजी जरूरी क्यों? (राजकरण सिंह)
  54. शिक्षा से ही नहीं, नौकरी से भी जाए अंग्रेजी (वेदप्रताप वैदिक, २००८)
  55. देश में भाषा के मुद्दे पर नवजागरण की जरूरत (पंकज श्रीवास्तव, नवम्बर २०११)
  56. अब भी आठवीं अनुसूची में क्यों रहे हिंदी? (डॉ परमानंद पांचाल, २८ दिसम्बर, २०११)
  57. जिनकी उपस्थिति से हिंदी ऊर्जावान है (ज्योतिष जोशी)
  58. मातृभाषा में शिक्षा ( प्रभाकर चौबे; 05 मार्च, 2012)
  59. हिन्दी को टूटने से बचाएँ : संदर्भ आठवीं अनुसूची ( डॉ. अमरनाथ )
  60. जापानियों ने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को किस प्रकार अपना बनाया? (डॉ रघु वीर)
  61. अंग्रेजी के बजाय प्रतिभा को परखा जाय (डॉ वेदप्रताप वैदिक, मार्च २०१३)
  62. चिन्दी-चिन्दी हिन्दी (डॉ अमरनाथ, मार्च २०१३)
  63. जन साधारण में वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित करना उनकी स्वस्थ मानसिकता और प्रगति के लिये अनिवार्य है ('भूविज्ञान'सम्पादकीय)
  64. क्या हो शिक्षा का माध्यम ? (श्रीश चौधरी ; दिसम्बर २०१३)
  65. भारत की सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी की मजबूती
  66. संघीय लोक सेवा आयोग का अंग्रेजी प्रेम (श्री योगेन्द्र जोशी ; जनवरी २०१४ )
  67. दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी माध्यम में पाठ्यक्रम विकास
  68. हिन्दी केवल भाषा नहीं, देश है (इन्दुनाथ चौधरी)
  69. भाषा-नियोजन और राजभाषा हिन्दी (डॉ जे आत्माराम)

वाह्य सूत्र (हिन्दी में)

  1. तकनीकी विकास से समृद्ध होगी हिन्दी (बालेन्दु शर्मा दाधीच ; 28-अगस्त-2018)
  2. जनता को जनता की भाषा में न्याय (अप्रैल 2018)
  3. भारतीय विदेश नीति में हिन्दी भाषा का महत्व
  4. भारतीय भाषा मंचके उद्देश्‍य व कार्य
  5. जनता को जनता की भाषा में न्याय (April 2018)
  6. शिक्षा के माध्यम की भाषा - मातृभाषा ( प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ; अप्रैल 2018)
  7. भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव ; मार्च २०१८)
  8. क्या भारत अपनी भाषा के बिना दुनिया का महाशक्तिशाली देश बन पाएगा? (फरवरी २०१८ ; दैनिक नवज्योति)
  9. मातृभाषा के बिना मौलिक विचारों की सृजना सम्भव नहीं (देश राज शर्मा ; फरवरी २०१८)
  10. कब आयेगा वह दिन जब अपनी भाषा में मिलने लगेगा न्याय? (प्रभासाक्षी ; दिसम्बर २०१७)
  11. सोशल मीडिया पर हिंदी का बोलबाला, गर्व के साथ प्रयोग करने लगे हैं लोग (सितम्बर २०१७, दैनिक भास्कर)
  12. हिंदी में राजनीति, राजनीति में हिंदी ( अगस्त २०१७ ; मृणाल पांडे )
  13. हिंदी का एक उपेक्षित क्षेत्र (डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री ; अगस्त २०१७ )
  14. हिंदी के टूटने से देश की भाषिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी (करुणाशंकर उपाध्याय ; 27/07/2017)
  15. हिंदी ही रोक सकती है अंग्रेजीवाद को (-डॉक्टर अशोक कुमार, पूर्व सदस्य, बिहार लोक सेवा आयोग, पटना ; जुलाई २०१७)
  16. हिंदी लाओ बनाम अंग्रेजी हटाओ ( डॉ. वेदप्रताप वैदिक ; जुलाई २०१७)
  17. बेबाक बोल- हिंदी, हिंदु और हिंदुस्तान : हिंदी है तो हिंदु (मुकेश भारद्वाज, July 8, 2017)
  18. सभी राज्यों में अपनाई जानी चाहिए हिन्दी सहित तीन भाषाओं की नीति, संस्कृत का विकल्प भी दिया जाए (जुलाई २०१७ ; माधवन नायर)
  19. भाषा : बोलने लगा भारत (जून २०१७, पाञ्चजन्य)
  20. उर्दू को देवनागरी में लिखकर हिंदी के पास लाएं (डॉ एस बी मिश्र ; मई २०१७)
  21. "रोमन"बनाम "देवनागरी"का सवाल (सुशोभित सक्तावत ; अप्रैल 2017 )
  22. शिखर से हिंदी (अप्रैल २०१७, लाइव हिन्दुस्तान)
  23. राष्ट्रपति ने स्‍वीकार की संसदीय समिति की सिफारिशें, हिंदी के आएंगे अच्छे दिन? (Apr 18 2017)
  24. कोलोंग के किनारे साहित्य चर्चा (मार्च २०१७ ; राघवेन्द्र दीक्षित)
  25. मातृभाषा (अतुल कोठारी)
  26. सोशल मीडिया में अंग्रेजी पर भारी हिंदी (नईदुनिया)
  27. हिंदी लाओ नहीं, अंग्रेजी हटाओ (जनवरी २०१७) वेद प्रताप वैदिक)
  28. विश्व भाषा बन चुकी है हिंदी, मगर … (जनवरी २०१७ ; मिथिलेश कुमार सिंह)
  29. हिंदी के नए अंदाज (सुधीर पचौरी ; दिसम्बर २०१६)
  30. साल 2050 तक दुनिया की सबसे शक्तिशाली भाषा होगी हिन्दी (Zee जानकारी ; दिसम्बर २०१६)
  31. हिन्दी का स्वाभिमान बचाने समाचार-पत्रों का शुभ संकल्प (नवम्बर २०१६)
  32. हिन्दी का सरलीकरण (राममनोहर लोहिया के हिन्दी सम्बन्धी विचार)
  33. पंजाब के लोग हिन्दी भाषा के साथ ही सोते और जागते हैं ( प्रो. बेदी ; सितम्बर २०१६)
  34. मप्र: शिक्षा में क्रांति (डॉ. वेदप्रताप वैदिक ; सितम्बर २०१६)
  35. हिन्दी नहीं रहेगी तो देश टूट जायेगा (प्रा. अनूप सिंह ; सितम्बर २०१६)
  36. न्याय व्यवस्था या अन्यायकारी व्यवस्था? (ब्रजकिशोर शर्मा ; सितम्बर २०१६)
  37. देश की एकता का मूल: हमारी राष्ट्रभाषा ( क्षेमचंद ‘सुमन’ )
  38. राष्ट्र भाषा की अंतर्वेदना (डॉ. प्रणव पण्ड्या)
  39. हिंदी को बढ़ावा देने के लिए होगा निदेशालय का गठन (मार्च २०१६ ; मुजफ्फरपुर)
  40. भाषा-नियोजन और राजभाषा हिन्दी (डॉ जे आत्माराम ; फरवरी २०१६)
  41. हिंदी की बढ़ती पहुंच से परेशानी क्यों (अनन्त विजय ; फरवरी २०१६)
  42. मध्य प्रदेश का हिन्दी सम्बन्धी आदेश : हिंदी के प्रयोग से सुगम बनेगा सरकारी कामकाज (फरवरी २०१६ ; डॉ. जयकुमार जलज)
  43. बस हिंदी ही हो पत्रकारिता की पढ़ाई का माध्यम (डॉ. वेद प्रताप वैदिक ; नवम्बर २०१५)
  44. हिंदी में विज्ञान संचार और रक्षा विज्ञान (डॉ. सुभाषचंद्र लखेड़ा ; नवम्बर २०१५)
  45. शिक्षा-माध्यम के बदलाव का प्रबंधन (डॉ मधुसूदन झावेरी ; अक्टूबर २०१५)
  46. अपने पारिभाषिक शब्दों से ही शीघ्र उन्नति (डॉ मधुसूदन झावेरी ; अक्टूबर २०१५)
  47. तमिल छात्र, आज, हिन्दी चाहता है। (डॉ मधुसूदन झावेरी ; अक्टूबर २०१५)
  48. भारतीय भाषाओं की साझी रणनीति का समय आया (डॉ. अनिल सद्गोपाल ; 14 अक्तूबर 2015)
  49. हिंदी दिवस पर खास: इंटरनेट चला हिंदी की राह (सितम्बर २०१५ ; लाइव हिन्दुस्तान)
  50. पत्रकारिता की भाषा (सितम्बर २०१५ ; श्री राहुल देव)
  51. हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव गांधीजी ने दिलाया (जुलाई 2015 ; श्री भगवान सिंह)
  52. शिक्षा से ही नहीं, नौकरी से भी जाए अंग्रेजी ( जून २०१५ ; वेद प्रताप वैदिक)
  53. गांधीजी कहते थे- राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्रसेवा संभव नहीं (जून २०१५ ; श्री भगवान सिंह)
  54. पढ़ाई से लड़ाई बंद! (पाञ्चजन्य में प्रशांत वाजपेई / अरुण कुमार सिंह)
  55. देश की समृद्धि के लिए जनभाषा में शिक्षा (संक्रान्त सानु)
  56. नागरी विवादः चेतन भगत को बालेन्दु का बिंदुवार जवाब नागरी विवादः चेतन भगत को बालेन्दु का बिंदुवार जवाब (प्रभासाक्षी , फरवरी २०१५)
  57. भारत में देवनागरी का कोई विकल्प नहीं हो सकता (फरवरी २०१५ ; विविध व्यक्तियों के विचार)
  58. योजनाबद्ध झूठ का विस्तार (फरवरी २०१५ ; रघु ठाकुर)
  59. आलेख : देवनागरी के बजाय रोमन लिपि क्यों? (जनवरी २०१५ , प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र)
  60. यूरोपीय विद्वानों ने तो खुद रोमन को कोसा है। (डॉ. परमानन्द पांचाल ; जनवरी २०१५)
  61. आईटी में राजभाषा हिंदी की सरपटिया प्रगति (जितेंद्र जायसवाल, वेबदुनिया ; जनवरी २०१५)
  62. चेतन भगत के ख्याल पर हिन्दी प्रेमियों के विचार (वेबदुनिया ; जनवरी २०१५)
  63. मातृभाषा और शिक्षा (डॉ देवेन्द्र दीपक)
  64. भर्ती परीक्षाओं में बढ़ा हिन्दी, संस्कृत का क्रेज (जनोक्ति ; नवम्बर २०१४)
  65. जर्मन क्यों? (नवम्बर २०१४ , डॉ अमृत मेहता)
  66. संसद भवन में भी हिन्दी की गूंज (25 नवंबर 2014 ; वेबदुनिया)
  67. जर्मन के प्रति यह अनुराग क्यों (नवम्बर २०१४ ; सुधीश पचौरी)
  68. “अंगरेजी तो पूरे विश्व में प्रयुक्त होती है” – भ्रम जिससे भारतीय मुक्त नहीं हो सकते (योगेन्द्र जोशी ; अक्टूबर २०१४)
  69. हिंदी के भविष्य में आस्था जगाता सम्मेलन (प्रभासाक्षी ; सितम्बर २०१४)
  70. टेक्नोलॉजी के आंगन में हिंदी के ठाठ (सितम्बर २०१४ ; दैनिक ट्रिब्यून)
  71. 80 करोड़ लोगों के बीच सुरक्षित है हिंदी (सितम्बर २०१४ ; बालेन्दु शर्मा 'दाधीच')
  72. रोमन लिपि से हिन्दी की हत्या की साजिश (8 सितम्बर 2014 ; प्रिय दर्शन)
  73. षड्यंत्रों का शिकार है हिंदी (सितम्बर २०१४ ; हिमकर श्याम)
  74. रजिस्‍ट्रेशन नम्‍बर प्‍लेट का देवनागरीकरण (शोध लेख)
  75. हिंदी से इतना बैर क्यों? (अगस्त २०१४ ; स्वाति पराशर, मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया)
  76. अदालती कार्यवाही हिन्दी में करने की मांग पर नोटिस (अगस्त २०१४ ; वेबदुनिया)
  77. सी.सैट हिन्दी भाषियों के खिलाफ ( जुलाई २०१४ ; अरुण निगवेकर रिपोर्ट)
  78. संसद में भारतीय भाषाओं की एकता (जुलाई २०१४ ; गोविन्द सिंह)
  79. नीति हिन्दी के लिये नहीं, अंग्रेज़ी के लिए चाहिए (जुलाई २०१४ ; प्रभु जोशी)
  80. हिंदी आंदोलन - अपने उद्देश्यों के लिए जनमत का दुरुपयोग (जुलाई २०१४ ; डॉ. दलसिंगार यादव, राजभाषा विकास परिषद)
  81. हिन्दी रोजगार की संभावनाओं से भरपूर (जुलाई २०१४ ; लाइव हिन्दुस्तान)
  82. भारत की विविधता (जुलाई २०१४ ; आर.एस.एन. सिंह)
  83. संघ लोक सेवा आयोग क्यों चाहता है अंग्रेजी का आतंक? (जुलाई २०१४ ; भारतीय भाषा अभियान)
  84. हिंदी के ये इलीट राइटर (जुलाई २०१४ ; नवभारत टाइम्स)
  85. हिंदी में पांच गुना बढ़ जाती है काबिलियत (जुलाई २०१४ ; अनुसंधान)
  86. भारतीय भाषाओं को कितना खतरा (जुलाई २०१४ ; डॉ जोगा सिंह विर्क)
  87. नेपाल में हिन्दी और हिन्दी साहित्य (सूर्यनाथ गोप)
  88. सिविल सेवा परीक्षा में बदलाव कर सकता है यूपीएससी (जून २०१४)
  89. सिविल सेवा परीक्षाओं में हिन्दी और ग्रामीण छात्रों ने लगाया उपेक्षा का आरोप, दिल्ली में किया विरोध प्रदर्शन (जून २०१४ ; प्रभात खबर)
  90. हिंदी को उसकी जगह देना नाइंसाफी कैसे? (जून २०१४ ; बालेन्दु शर्मा दाधीच)
  91. मोदी: चुनावी सफलता और हिन्दी (जून २०१४ ; मधुसूदन झावेरी)
  92. मां, मातृभूमि, मातृभाषा का विकल्प नहीं (मई २०१४ ; अतुल कोठारी)
  93. मोदी की जीत में हिन्दी की भूमिका (मई २०१४ ; सुधीश पचौरी)
  94. विकास के मॉडल में कहां है भाषा...? (प्रभु जोशी; अप्रैल २०१४)
  95. कश्मीर में हिन्दी : स्थिति और संभावनाएँ (प्रो. चमनलाल सप्रू)
  96. लगातार बढ़ रहे हैं हिंदी बोलने और समझने वाले (प्रभासाक्षी ; अप्रैल २०१४)
  97. अमेरिका में बढ़ रहे हैं हिंदी बोलने वाले (प्रभासाक्षी ; अप्रैल २०१४)
  98. भारत से रिश्ते सुधारने को हिंदी की मिठास : अमेरिका ने भारत में अपने दूतावास की वेबसाइट को हिंदी में भी आरम्भ किया (अप्रैल २०१४)
  99. हिन्दी में साहित्येतर लेखन और प्रकाशन (प्रेमपाल शर्मा ; अप्रैल २०१४)
  100. प्रोफेशनल कोर्स में भी अंग्रेजी की बाध्यता खत्म] (दैनिक जागरण ; मार्च २०१४)
  101. हिंदी से एमबीए करने वाले भी नौकरी पा रहे हैं (प्रभासाक्षी ; मार्च २०१४)
  102. अपने दस्तखत अपनी भाषा में ही करें (वेदप्रताप वैदिक ; मार्च २०१४)
  103. वर्धा के समावेशी (मार्च २०१४ ; ओम थानवी)
  104. आस्ट्रेलियाई पढ़ेंगे हिंदी ! (जिन्दगी नेक्स्ट ; फरवरी २०१४)
  105. नवभाषिक लोक-व्यवस्था और हिंदी : तीसरी परम्परा के इहलोक में (शैलेन्‍द्र कुमार सिंह)
  106. मातृभाषा के नए प्रश्न (परिचय दास ; फरवरी २०१४)
  107. नाकेबंदी के बावजूद सरहद पार हिंदी (प्रभासाक्षी ; फरवरी, २०१४)
  108. अंतरजाल पर बढाऐँ, आर्य भाषा का मान (जनवरी २०१४)
  109. स्वामी दयानंद और आर्यसमाज की हिंदी भाषा को देन (नवम्बर २०१३ ; आर्यसमाज पुणे)
  110. अंग्रेज , अंग्रेजी और अंग्रेजीयत के गुलाम (गौरवमय भारत ; अक्तूबर २०१३)
  111. दुनियाभर में खूब धूम मचा रही है हमारी हिंदी (अरविन्द राजतिलक ; सितम्बर २०१३)
  112. विधि शिक्षा और न्याय क्षेत्र में भारतीय भाषाओं की उपयोगिता पर राष्ट्रीय सम्मेलन (सितम्बर २०१३)
  113. वैश्विक गगन में तेजी से उड़ रही है हिन्दी (पाञ्चजन्य ; सितम्बर २०१३)
  114. हिन्दी के अंतराय (ओम विकास ; सितम्बर २०१३)
  115. आर्य भाषा के उन्नायक महर्षि दयानंद (डॉ. मधु संधु ; सितम्बर २०१३)
  116. राजभाषा हिन्दी की मनोवैज्ञानिक भूमि (सृजनगाथा ; अप्रैल २०१२)
  117. मातृभाषा का महत्व (मधूलिका ; अगस्त २०१२)
  118. हिंदी का महत्व और विडंबनाएं (चौथी दुनिया ; अक्टूबर २०१०)
  119. हिंदी का ज्ञान बन गया है बाजार की शान (प्रभासाक्षी ; दिसम्बर २०११)
  120. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में हिन्दी का महत्त्व (विश्वमोहन तिवारी ; दिसम्बर २०१०)
  121. ऐप्लिकेशन्स में भी करें हिंदी में काम (बालेन्दु शर्मा 'दाधीच' ; सितम्बर, 2013)
  122. हिंदीतर प्रांतों के हिंदी-समर्थक प्रकाशन ( डॉ. मनोज श्रीवास्तव ; अप्रैल 2012 )
  123. स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएँ : प्रासंगिकता, उपादेयता एवं सीमाएँ (प्रो दिलीप सिंह ; सितम्बर २०११)
  124. हिन्दी का समाजशास्त्र (प्रो. अरुण दिवाकरनाथ वाजपेयी)
  125. पूर्वोत्तर की भाषाएँ और हिंदी (गोपाल प्रधान)
  126. भाषा नीति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय खोज (जोगा सिंह ; ३० जून १३)
  127. जापान में अंग्रेजी- नहीं चलेगी, नहीं चलेगी (बीबीसी, जून २०१३)
  128. ‘अंग्रेजी न आने से हमारे बैंक 2008 के संकट से बच गए’ : जापानी वित्तमंत्री (जून २०१३)
  129. अब भी नहीं मिला अपनी भाषा में न्याय पाने का हक (श्यामसुन्दर पाठक, मई २०१३)
  130. सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक (प्रवक्ता ब्यूरो, मई २०१३)
  131. सामाजिक न्याय में रोड़ा बनती अँग्रेजी (प्रमोद भार्गव, मार्च २०१३)
  132. भाषाओं के लोकतंत्र के पक्ष में (योगेन्द्र यादव, मार्च २०१३))
  133. संयुक्तराष्ट्र में हिंदी को मिले हक (वेदप्रताप वैदिक ; २०११)
  134. हमारे देश की सारी समस्या का हल हिन्दीहै (सतीश कुमार रावत)
  135. भाषा का दमन: विदेशियों की एक सोची समझी चाल ! (डॉ सुधीर कुमार शुक्ल 'तेजस्वी' ; नवम्बर २०१२)
  136. हिंदी माध्यम से उच्च शिक्षा दलितों के हित में (गंगा सहाय मीणा)
  137. हिंदी की अन्तर-क्षेत्रीय, सार्वदेशीय एवं अंतरराष्ट्रीय भूमिका (प्रोफेसर महावीर सरन जैन)
  138. हिन्दी का लैमार्कवादी विकास: राष्ट्रीय आत्मघात का एक अध्याय (2) (वासुदेव त्रिपाठी ; सितम्बर २०११)
  139. हिन्दी का लैमार्कवादी विकास: राष्ट्रीय आत्मघात का एक अध्याय (1) (वासुदेव त्रिपाठी ; सितम्बर २०११)
  140. हिंदी भाषा का भारत के उच्चतम न्यायालय में प्रयोग (जनतांत्रिक अधिकार)
  141. इजराइल में हीब्रू - संकल्प का बल (२०१२ ई ; डॉ. रवीन्द्र अग्निहोत्री)
  142. जापानी भाषा कैसे सक्षम बनी ? (डॉ. मधुसूदन झावेरी ; दिसम्बर, २०१२)
  143. जो देश अपनी ही भाषा में काम नहीं करते वे हमेशा पिछड़े रहते हैं ( नरेश सक्सेना, दिसम्बर २०१२)
  144. पाकिस्तान में उर्दू में घुलती जा रही है हिंदी (नवम्बर, २०१२)
  145. दो दशकों में हुआ है हिंदी का अंतरराष्ट्रीय विकास (अरविंद जयतिलक ; नवम्बर २०१२)
  146. हिंदी का दुर्भाग्य या कहें भारत का दुर्भाग्य? (राजीव दीक्षित)
  147. हिन्दी ज्ञान–विज्ञान की भाषा है; तत्समीकरण, तद्भवीकरण दोनों उसकी शक्ति हैं। (रमेश कुमार शर्मा)
  148. इजराइल में हीब्रू-संकल्प का बल (-डॉ. रवीन्द्र अग्निहोत्री)
  149. इंग्लैंड में अँग्रेजी कैसे लागू की गयी ? (-डॉ. गणपति चंद्र गुप्त)
  150. क़ानून से बची थी फ्रांस में फ्रेंच
  151. देवनागरी लिपि : सौन्दर्य और तकनीक (सितम्बर २०१२ ; अनूप सेठी)
  152. तमिलनाडु में हिन्दी लोकप्रिय? (डॉ. मधुसूदन झवेरी ; सितम्बर २०१२)
  153. भाषाई आतंक का दायरा (कमलेश कुमार गुप्त ; सितम्बर २०१२)
  154. नई हिंदी गढ़ रही है सोशल नेटवर्किंग (प्रभासाक्षी, सितम्बर २०१२)
  155. क्या हिन्दी दुनिया की एक सबसे लोकप्रिय भाषा होगी? (जून २०१२, रेडियो रूस)
  156. अंग्रेजी के दुष्परिणाम (शंखनाद ; जुलाई २०१२)
  157. अंग्रेजी के बारे में भ्रम (शंखनाद ; जुलाई २०१२)
  158. हिंदी अखबार के पाठक नहीं पसंद कर रहे हैं अंग्रेजी शब्द (अप्रैल २०१२)
  159. भारत सरकार ने एक नई खोज की है: हिन्दी कठिन है और अंग्रेजी सरल (अनिल त्रिवेदी, गांधीवादी चिंतक ; नवंबर 2011)
  160. अंग्रेजी बनाम अंग्रेजियत (गुलाब कोठारी ; अगस्त २०११)
  161. यूरोपीयों पर तेजी से चढ़ रहा है ‘हिंदी का बुखार'
  162. हिन्दी-अंग्रेजी टक्कर (डॉ मधुसूदन झावेरी)
  163. कटघरे में अंग्रेजी मीडिया (तेजिन्दर)
  164. अंग्रेजी का हठ और कारपोरेट मठ (डॉ वेदप्रताप वैदिक)
  165. 170 देशों में नोटों पर अंग्रेजी का हाल (चन्दन कुमर मिश्र)
  166. हिन्दी के लिये घातक है त्रिभाषा-सूत्र (वेदप्रताप वैदिक)
  167. अपना दिल फैला रही है हिंदी (अखिलेश आर्येन्दु)
  168. षडयंत्र है या अनभिज्ञता (प्रो. सुरेन्द्र गंभीर)
  169. हिन्दी पर सरकारी हमले का आखिरी हथौड़ा
  170. अंगरेजी का खतरनाक अंडरवर्ल्ड-२ (विजयशंकर चतुर्वेदी)
  171. अँगरेजी का अंडरवर्ल्ड-१ (विजयशंकर चतुर्वेदी)
  172. हिन्दी किसकी है (बीनू भटनागर)
  173. भारतीय भाषाओं की अस्मिता की रक्षा के लिये भोपाल घोषणा-पत्र (डॉ कविता वाचक्नवी)
  174. स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएँ : प्रासंगिकता, उपादेयता एवं सीमाएँ (प्रो दिलीप सिंह)
  175. अंग्रेजी मानसिक दासता और हिन्दी (साहित्य दर्शन)
  176. राजभाषा प्रशिक्षण : प्रगति के पथ पर (मधुमती)
  177. भारतीय ”बॉन्साई पौधे” (मधुसूदन झावेरी)
  178. मातृभाषा में शिक्षा का महत्व (जगमोहन सिंह राजपूत, एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक)
  179. अंग्रेजी की अंधभक्ति (डॉ वेदप्रताप वैदिक)
  180. भारत में हिंदी का वर्तमान और इंग्लैंड में अंग्रेज़ी का अतीत एक जैसा ; अंग्रेज़ों के भाषा प्रेम तथा समर्पणभाव का अनोखा उदाहरण (डॉ. दलसिंगार यादव)
  181. बैसाखी पर दौडा-दौडी (प्रो मधुसूदन झावेरी)
  182. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी ; पाँचवां भाग (लेखक : ऋषिकेश राय)
  183. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी ; चौथा भाग (लेखक : ऋषिकेश राय)
  184. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी ; तीसरा भाग (लेखक : ऋषिकेश राय)
  185. अंग्रेजी के साम्राज्यवाद का हथियार बना मीडिया! (तपन भट्टाचार्य ; सितम्बर २०१०)
  186. हिन्दी का सरलीकरण (आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा)
  187. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी ; दूसरा भाग (लेखक : ऋषिकेश राय)
  188. राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी ; पहला भाग (लेखक : ऋषिकेश राय)
  189. हिन्दी की अन्तर्निहित शक्ति (डॉ. मथुरेश नन्दन कुलश्रेष्ठ)
  190. चुनाव के बीच में हिंदी का जादू (लाइव हिंदुस्तान)
  191. हिन्दी के देश में हिन्दी की लड़ाई (भानुप्रताप सिंह)
  192. अंग्रेजी थोपने की तैयारी (हृदयनारायण दीक्षित)
  193. बारहवीं सदी में प्रशासन की भाषा थी हिंदी (उमेश चतुर्वेदी)
  194. हिन्दुस्थान और हिन्दू के बाद अब हिन्दी को बांटने का षड्यंत्र (विजय कुमार)
  195. जिन्होंने दी हिन्दी को ऊंचाई (हिंदुस्तान लाइव)
  196. करियर के माथे पर हिन्दी की बिंदी (हिंदुस्तान लाइव)
  197. भाषा के मातृभाषा न रहने के संकट (राष्ट्रीय हिंदी मेल)
  198. जब तक ’अंग्रेजी’ राज रहेगा, स्वतंत्र भारत सपना रहेगा (विश्वमोहन तिवारी , पूर्व एयर वाइस मार्शल)
  199. स्वाधीनता संग्राम में हिंदी की अहम भूमिका थी
  200. राष्ट्रभाषा : मनन, मन्थन, मन्तव्य (संजय भारद्वाज का आलेख; यह लेख बहुत विस्तृत है ; लगभग १.५ मेगाबाइट)
  201. अदालती कामकाज में पूरी तरह सक्षम है हिंदी भाषा (प्रभासाक्षी)
  202. कई राज्यों की अदालतों में होती है हिंदी में बहस (प्रभासाक्षी)
  203. अंग्रेजी संसार में हिंदी का आकाशप्रमोद जोशी
  204. भाषाई अस्मिता और हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव)
  205. हिन्दी राष्ट्रभाषा (श्रीविचार)
  206. इसलिए बिदा करना चाहते हैं, (ताक-झांक)
  207. दिमाग को चुस्त बनाती है हिंदी !! (राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान संस्थान का शोध)
  208. argade.htm प्रबंधन और हिन्दी (रंजना अरगड़े)
  209. हिन्दी के प्रश्न और उत्तर (संयुक्त राज्य अमेरिका में हिन्दी के एक प्रमुख कार्यकर्ता श्री राम चौधरी से साक्षात्कार)
  210. पारिभाषिक शब्दावली की विकास-प्रक्रिया (मधुमती)
  211. हिंदी या हिंग्लिश? (राजेन्द्र मिश्र; मधुमती में)
  212. हिन्दी की स्वीकार्यता में बाधक केन्द्रीय कानून (किरन माहेश्वरी)
  213. डा राविलास शर्मा और 'हिन्दी महाजाति'की अवधारणा
  214. कालसिध्द भाषा है हिन्दी (लोकतेज)
  215. हिंदी में अदालती कार्यवाही के सफल प्रयोग - न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त
  216. खूब अवसर हिंदी में - संध्या रानी
  217. हिन्दी-परक दोहे (मधुमती)
  218. हिन्दी भाषा और साहित्य : बाह्य प्रभावों का हस्तक्षेप - डॉ कन्हैया सिंह
  219. हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की परंपरा (डॉ ऋषभ शर्मा)
  220. इंडिक भाषा कंप्यूटिंग के माध्यम से भारतीयों का वैश्विक समन्वय - विजय कुमार मल्होत्रा
  221. शोषण का हथियार है अंग्रेजी (डॉ राममनोहर लोहिया)
  222. हिन्दी में आधुनिक प्रौद्योगिकी की संभावना - विश्वमोहन तिवारी
  223. राष्ट्र भाषा और हमारा गणतंत्र (सृजनगाथा)
  224. गीत : राष्ट्रभाषा महान है (मोहन रावल)
  225. संस्कृति, साहित्य और लिपि : संदर्भ राष्ट्रभाषा (मधुमती)
  226. दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता - डॉ. सी. जय शंकर बाबु
  227. बेहतर भविष्य की ओर हिंदी - हृदयनारायण दीक्षित
  228. गांधी-दर्शन में राष्ट्रभाषा समाधान
  229. दुनिया से कह दो कि गाँधी अंग्रेजी भूल गया (मधुमती)
  230. हिन्दी की उपेक्षा से गहरा हुआ विभाजन (डा राममनोहर लोहिया)
  231. आम लोगों को सूचनाओं से वंचित भी करती है अंग्रेजी (राममनोहर लोहिया)
  232. हिंदी पत्रकारिता : आत्ममंथन की जरूरत (१) - अरविंद कुमार सिंह
  233. भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी - कृष्ण कुमार यादव
  234. गुलामी के लिए अँग्रेजी की बेड़ियों की आराधना क्यों - मोहन रावल
  235. जारी है हिन्दी की सहजता को नष्ट करने की साजिश
  236. हिंदी पत्रकारिता पर अंग्रेजी का आक्रमण (संवाद)
  237. dutta.htm विकृति पर केंद्रित होती पत्रकारिता के खतरे (मिडिया विमर्श)
  238. भाषा विवाद की जड - विदेशी भाषा अंग्रेजी
  239. कैसे मिले हिन्दी को सम्मान? - महीप सिंह
  240. इसलिए बिदा करना चाहते हैं, हिंदी को हिंदी के कुछ अख़बार (प्रभु जोशी)
  241. हिन्दी लिखो ईनाम पाओ (Hindi Media)
  242. हिंदी सिनेमा : कितना हिंदी? - विनोद अनुपम
  243. हिन्दी का भाषा वैभव ( डा. मधुसूदन झवेरी )
  244. वैश्वीकरण में हिन्दी और प्रवासी भारतीयों का योगदान ( शैलेश मिश्र )
  245. हिन्दी दिवस अंग्रेजों के खाने कमाने और आतंकवाद मिटाने के प्रण का दिन
  246. कमी हिन्दी में नहीं, हिन्दीभाषियों में है - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
  247. बेहतर था अंग्रेज का राज - ऋषभ देव शर्मा
  248. किसानों के लिए बीज व पानी से भी अहम है हिन्‍दी का मुद्दा - अशोक पाण्डेय, अपने हिन्दी ब्लग खेती-बारीमें
  249. हिन्दी एक समृद्ध भाषा (वेबदुनिया)
  250. राष्ट्रवाद और भाषा - डॉ. दया प्रकाश सिन्हा
  251. वर्चस्व बनाती भाषायी पत्रकारिता - प्रीतीश नंदी
  252. हिन्दी मरे तो हिन्दुस्तान बचे - प्रभु जोशी
  253. प्रवासी भारतीय और हिंदी: कुछ सुझाव - प्रो. हरिशंकर आदेश
  254. विश्व में हिन्दी की लोकप्रियता
  255. हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान -प्रो.ऋषभदेव शर्मा
  256. भारतीय भाषाओं का पुनरुत्थान कैसे? -आशीष गर्ग
  257. भारतीय भाषाओं का भविष्य - राहुल देव
  258. हिंदी में क्यों नहीं बोलते फिल्मी सितारे! (निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट)
  259. भारत में राष्ट्रीय अखण्डता : भाषायी समन्वय - प्रोफेसर दिविक रमेश;अक्टूबर 1, 2006
  260. हिन्दी - करवट लेती नयी चुनौतियाँ - डॉ. विनय राजाराम
  261. अंग्रेजी के चमगादड़ - डॉ.वेदप्रताप वैदिक (21 May, 2008)
  262. हिंदी की हत्या के विरुद्ध -प्रभु जोशी
  263. विसंस्कृतिकरण– विदेशी भाषा का मोह
  264. प्रयोजनमूलक हिन्दी - डॉ. वखतसिंह गोहिल
  265. इक्कीसवीं सदी की चुनौतियाँ और हिन्दी - डॉ. हेमलता महिश्वर
  266. राष्ट्रभाषा हिन्दी की श्रीवृद्धि में क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान
  267. राष्ट्रवाणी (पण्डित गोपालप्रसाद व्यास कृत 'बिन हिन्दी सब सून'से)
  268. हिन्दी ही मेरे लिए भारतमाता है (पण्डित गोपालप्रसाद व्यास)
  269. हिंदू-हिन्दी-हिंदुस्तान (जनोक्ति.कॉम)
  270. विश्व में हिंदी फिर पहले स्थान पर (डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल द्वारा कृत भाषा शोध अध्ययन 2007 का निष्कर्ष)
  271. हिन्दी के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन
  272. महापुरुषों के अनमोल विचारों का संग्रह हिन्दी में

अंग्रेजी में लेख/समाचार

  1. Super 30 founder Anand Kumar stresses on the need to teach in mother tongue (सितम्बर २०१८ ; इण्डिया टुडे)
  2. The role of Hindi in improving international cooperation ( शशि शेखर ; अगस्त २०१८ )
  3. No Conflict between Hindi and Regional State Languages (10 march 2018 , Rajindar Sachar)
  4. How Hindi and Tamil are taking over cricket commentary in India ( Jaideep Vaidya ; फरवरी २०१७)
  5. Why Modi chose Hindi medium to pitch India to the world (January 28, 2018, Swapan Dasgupta)
  6. Why pushing Hindi at UN an expression of India’s soft power, not chauvinism (January 2018)
  7. India ready to meet all costs to make Hindi an official UN language (January 2018)
  8. Friends of Hindi in the South, abroad (September 2017, RK Sinha)
  9. Why Ramachandra Guha’s Claims About ‘Hindi Revivalism’ Are Logically Bankrupt (July 2017 , Vivek V Gumaste)
  10. Are we finally getting over our obsession with English as a benchmark of competency? (जून २०१७)
  11. The rise of Hinglish: How the media created a new lingua franca for India's elites (June 2017 ; Scroll)
  12. Come, Fall in Love With Hindi.... (हिन्दी अकादमी)
  13. Diversity in language (Regina Naidu, March 09, 2017)
  14. Hindi Language is Spreading Rapidly (January 11, 2017 ; Mahaveer Sanglikar)
  15. All of us must learn and respect other Indian languages: PM Narendra Modi’s message at Sardar Patel exhibitiona (अक्टूबर, २०१६)
  16. A Plea for Hindi (राम चौधरी, भौतिकी विभाग, न्यू यॉर्क स्टेट विश्वविद्यालय, ओस्वेगो )
  17. What will it take for us to Indianise our internet? (जुलाई २०१६ )
  18. Government for making mother tongue medium of instruction in schools (वेंकैया नायडू ; अप्रैल २०१६)
  19. The Role Of Indigenous Languages In India’s Development (दिसम्बर २०१५ ; S Subrahmanyam)
  20. The Unsuitability of English ( November 23, 2015 by Geoffrey Pullum)
  21. Lost in translation: For Indian media obsessed with English, Modi's Hindi speeches lead to biased reportage (नवम्बर २०१५ ; Seema Kamdar)
  22. Why India Shouldn't Move Away From the Hindi Script (By Akhilesh Pillalamarri, September 03, 2015)
  23. Why writing Hindi in Roman rather than Devanagri would be a disaster ( केशव गुहा, अगस्त २०१५)
  24. How English Ruined Indian Literature (AATISH TASEER, MARCH 19, 2015)
  25. How English Ruined Indian Literature (By AATISH TASEER ; MARCH 19, 2015)
  26. Language and Basic Rights in India: Beyond English (जुलाई २०१४ ; Akhilesh Pillalamarri)
  27. Macaulay's Children (Subhash Kak)
  28. Google predicts India will be largest net mkt (Times of India)
  29. Rise of Hindi Portals (Techtree dot com)
  30. Is the Web going the Hindi way? (Localization Labs)
  31. English language affecting mother tongue - By Mithun Dey
  32. English isn't the Only Language of the Web
  33. Writing the Web’s Future in Numerous Languages
  34. No language has progressed like Hindi (Ramesh Dave)
  35. Google predicts India will be largest net mkt (Times of India)
  36. Rise of Hindi Portals (Techtree dot com)
  37. Is the Web going the Hindi way? (Localization Labs)
  38. English language affecting mother tongue - By Mithun Dey
  39. English isn't the Only Language of the Web
  40. Writing the Web’s Future in Numerous Languages
  41. India: Common script can unite (Shankara Saran)
  42. Don't teach English to your children in Class I (MS Swaminathana)
  43. The Rise of Hindi (Hindustan Times, New Delhi, July 20, 2010)
  44. The Rise of Hindi (Hindustan Times, New Delhi, July 20, 2010)
  45. Authorities ban mixed English words "ungelivable" in publications
  46. Englishman trashes myths about English (टाइम्स आफ इण्डिया)
  47. Poke Me: Why English should not be the medium of instruction in India (The Economic Times)
  48. Is premature English making India a super-dunce? (Swaminomics)
  49. पैट्रिसिया रायन: ज़बरदस्ती इंग्लिश न थोपें !
  50. English is a big obstacle in the path of India’s development (उतिष्ठ जाग्रत)
  51. The rising power of Hindi (बिजनेस स्टैण्डर्ड ; दिसम्बर २०१२)
  52. The Dominance of Angreziyat in Our Education (जून २०१३)
  53. 10 Reasons why Hindi Is Increasingly Gaining Popularity in United States Of America (अगस्त, २०१३)
  54. Increasing Popularity of Hindi Newspapers in India (अक्टूबर २०१३)
  55. Google eating into Wikipedia page views? Hindi Wikipedia page view increased by 34& in 2013 (Times of India, Jan 2014)
  56. Hindi becoming the language of sports commentary (फरवरी २०१४)
  57. ‘Indian languages need to be strengthened’ (मई २०१४)
  58. No more English, Modi chooses Hindi for talks with foreign leaders (जून २०१४ ; इण्डियन एक्सप्रेस)
  59. Modi, Hindi and why language is power (जून २०१४ ; शोनू नंगिया , Associate Professor of Foreign Languages. He teaches French and Spanish at Louisiana State University at Alexandria (USA))
  60. 'We Want Hindi': In Tamil Nadu, New Demand Speaks Language of Change (जून २०१४ ; एन डी टी वी)
  61. Indian businessmen announce grant to promote Hindi in Israel (जून २०१४ ; इकनॉमिक टाइम्स)
  62. Hindi Chauvinism Or Anti-Hindi Bias? (जुलाई २०१४ ; बिजनेस इनसाइडर)
  63. From Japan to US to Russia, Modi will speak in Hindi (जुलाई २०१४ ; हिन्दुस्तान टाइम्स)
  64. English medium education and its place in India (जुलाई २०१४ ; नीतिसेन्ट्रल)
  65. A check for linguistic discrimination (अगस्त २०१४ ; जागरण सम्पादकीय)
  66. Is Hindi making a comeback in India after years of pursuit of English? (अगस्त २०१४ ; वाशिंगटन पोस्ट)
  67. Hindi Literary Symposium a big hit in South Africa (अगस्त २०१४ ; इकनॉमिक टाइम्स)
  68. Beyond the Hindi heartland (अगस्त २०१४ ; हिन्दुस्तान टाइम्स)
  69. To Study or Not to Study English: India Debates (अगस्त २०१४ ; एन डी टी वी)
  70. Hindi rapidly gaining popularity in Arunachal Pradesh (अगस्त २०१४ ; डी एन ए)
  71. How Hindi became the language of choice in Arunachal Pradesh (अगस्त २०१४)
  72. Hindi outpaces English globally: Linguistic survey (नवम्बर २०१४ ; सिफी)
  73. The English Class System (Mar 1, 2011 by Sankrant Sanu in Education)
  74. इंग्लिश मीडियम सिस्टम, दैट इज ‘अंग्रेजी राज’: ‘भ्रष्टाचार’, ‘शोषण’, ‘गैरबराबरी’ की व्यवस्था पर ‘सांस्कृतिक ठप्पा’ अश्विनी कुमार
  75. The English Class System (2003 , Sankrant Sanu )

पुस्तकें

अपनी ही भाषा की पीठ में छुरा भोंक रहे हैं हम

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नई दुनिया (१६ जनवरी) से साभार
लेखक- डॉ जयकुमार जलज

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राजभाषा का पदनाम तो जरूर वर्ष 1950 से हिंदी को दिया गया, किंतु पद के अधिकारों से उसे वंचित रखा गया। जमीन हिंदी के नाम दर्ज हुई, कब्जा अंग्रेजी को मिला। कब्जे को खाली कराना आसान नहीं होता। फिर जब सरकार ही कब्जा करने वाले के पक्ष में हो तो यह काम और भी कठिन हो जाता है। अंग्रेजी को 1965 तक के लिए सिंहासन दिया गया था। 1967 में उसे अनिश्चितकाल के लिए उस पर बैठे रहने की संवैधानिक छूट दे दी गई।

अंग्रेजी के खिदमतगारों ने संसद के बाद अब सड़क पर भी मोर्चाबंदी कर ली है। विज्ञापन, कोचिंग, प्रसार माध्यम, उच्च वर्ग आदि भ्रम पैदा कर रहे हैं कि रोजगार चाहिए तो अंग्रेजी माध्यम से पढिए। विदेश जाना है तो अंग्रेजी माध्यम अपनाइए। ये कोई नहीं देखता कि शहर कस्बे में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की जितनी संख्या है, क्या उन शहरों/कस्बों में उतनी संख्या अंग्रेजी बोलने वालों की है या नहीं?

अस्सी प्रतिशत जनता शायद ही कभी विदेश जाए। और विदेश का अर्थ सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया ही नहीं होता। 90 प्रतिशत रोजगारों में लोग बिना अंग्रेजी के सफल हो रहे हैं। क्रिकेट जैसा अंग्रेजी खेल भी बिना अंग्रेजी जाने खेला जा रहा है। निर्माण कार्य, खेती, दुकानदारी, व्यापार, व्यवसाय, वाहन चालन, मजदूरी, कारखाने, लघु उद्योग, गृहकार्य आदि बिना अंग्रेजी के चल ही रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व कुछ हिंदी अखबारों को अचानक यह इलहाम हुआ था कि  हिंदी में समुचित, सटीक शब्दावली और चुस्त-दुरुस्त वाक्य संरचना नहीं है। उन्हें चंद्र, चंद्रमा, चांद, चंदा, इंदु, निशाकर, निशिकर, रजनीश, मृगांक, राकेश, सुधांशु, रजनीकर, विधु, शशि, शशधर, शशांक, सुधाकर, हिमकर, हिमांशु, ताराधिप, निशानाथ, रजनीचरजैसे तमाम शब्द अंग्रेजी के 'मून'शब्द के सामने बौने लगे। उन्होंने चंद्र अभियान को ‘मून मिशन'और अभियान असफल हुआ तो 'मून मिशन मौन'लिखना पसंद किया था। इससे वे पाठकों तक शायद यह संदेश पहुंचाना चाहते थे कि क्या करें हिंदी में मून के लिए कोई शब्द ही नहीं है!

हिंदी अपभ्रंश की बेटी, प्राकृत की पोती व संस्कृत की पड़पोती है। उर्दू व उसका एक ही डीएनए है। उसकी अनेक बोलियां उसे समृद्ध करती हैं। सभी भारतीय भाषाओं से उसका कोई न कोई घनिष्ठ रिश्ता है। उसके शब्दों के सूक्ष्म अंतरों पर नजर तो डालिए- बढ़ा तो कदम, छू लो तो चरण, मार दो तो टंगड़ी, अड़ा दो तो टांग, घुघरू बांधो तो पग, चिह्न छोड़ो तो पद, प्रभु के हों तो पाद, फूले तो पांव, कुल्हाड़ी मारो तो पैर और सिर पर पड़े तो लात।

जिन्हें अंग्रेजी की जरूरत कभी नहीं पड़नी है, उन्हें भी अनिवार्यतः अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा में झोंका जा रहा है। यानी आपको भले ही इंदौर से रतलाम या कराची जाना हो, जाना लंदन होकर ही पड़ेगा। पूरे देश को एक ऐसी भाषा के पीछे दौड़ाया जा रहा है, जिसकी जड़ें देश में हैं ही नहीं। हम एलकेजी से ही बच्चों के गले में अंग्रेजी बांध देते हैं। हमें बच्चों को दोयम दर्जे की प्रतिभा बनाना मंजूर है, अंग्रेजी छोड़ना मंजूर नहीं है। 

अंग्रेजी पढ़ाना गलत नहीं, अंग्रेजी माध्यम से सभी विषय पढ़ाना गलत है। बच्चों की अवधारणाओं और अंग्रेजी शब्दों के बीच संगति ही नहीं बैठ पाती है। हिंद स्वराज में महात्मा गांधी ने कहा था, 'हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग हैं। राष्ट्र की हाय अंग्रेजों पर नहीं, बल्कि हम पर पड़ेगी।'

वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा के रूप में हिन्दी भाषा का स्वरूप

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डॉ. विद्यासागर उपाध्याय

प्राचार्य आर.डी.एस.पी.जी. कॉलेज कुसांव, भाऊपुर जौनपुर

प्रकाशन वर्ष - २०१७


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संस्कृत भाषा से निःसृत हिन्दी ऐसी भाषा है जो अनेक बोलियों के रूप में उत्तर भारत और मध्य भारत की मातृभाषा है। वह कई बोलियों और उपभाषाओं से प्रभावित होने के कारण समन्वयात्मक है। हिन्दी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिन्दी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं। वस्तुतः हिन्दी शब्द उतना एकरूप भाषा के रूप में व्यवहृत नहीं होता जितना परम्परा के अर्थ में होता है।

भाषा और विज्ञान अविच्छिन्न रूप से समवेत् है। भाषा के बिना तथ्यों की भिव्यक्ति नहीं हो सकती। इसलिए भाषा को सभी तथ्यपरक विषयों से असम्बन्धित नहीं किया जा सकता है।

हिन्दी भाषा में विज्ञान के साहित्य का अभाव है। अतएव वैज्ञानिक उपलब्धियों को अनुवाद के द्वारा प्रकाशित करने के प्रयास किए गए हैं ताकि वैज्ञानिक उपलब्धियों को जनमानस तक पहुँचाया जा सके। भाषा प्राकृतिक और कृत्रिम रूपों में दो प्रकार की होती है। प्राकृतिक भाषा वह है जो स्वतः स्फुटित हो और स्वाभाविक रूप से जनसामान्य की भाषा हो। कृत्रिम भाषा, विज्ञान की भाषा होती है जो वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित की जाती है। विज्ञान जितना ही सुनिश्चित और असंदिग्ध होता है उतना ही वह शब्द को अनेकार्थता से हटाकर एकार्थता की ओर लाता है। विज्ञान के विकास के साथ-ही-साथ शब्दों (पारिभाषिक शब्दावली) का विकास भी आवश्यक है। विश्व में जो भी नयी वस्तुएँ आयेगीं उनको प्रकट करने के लए नये शब्द देने पड़ेगे। वैज्ञानिक साहित्य ज्ञानमीमांसीय होता है। अतएव उसकी मूल प्रवृत्ति सूचनात्मक और विवेचनात्मक होती है। अपने उद्देश्य की अभिपूर्ति के लिए वैज्ञानिक साहित्य का लेखक सुनिश्चित अर्थवाली पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग करता है। इस शब्दावली का अर्थ सुनिश्चित होता है जिसे विज्ञान का अध्येता उसी रूप में ग्रहण करता है। इस शब्दावली के प्रयोग के कारण प्रत्येक विज्ञान की अपनी भाषा होती है। अतः वैज्ञानिक और तकनीकी साहित्य में भाषा के साथ मनचाहा प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

आज के वैज्ञानिक युग में वही भाषा लोकप्रिय होगी जिसका व्याकरण विज्ञान संगत होगा, जिसकी लिपि कम्प्यूटर की लिपि होगी। हिन्दी भाषा इस दृष्टि से समृद्ध है। भारत में ‘चाल्स विल्किन्स’ और ‘पंचानन कर्मकार’ के द्वारा 1770 ई0 में देवनागरी लिपि के टाइप का विकास हुआ। टाइप के विकास के बाद हिन्दी में पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों की संख्या में वृद्धि हुई। मोनो और लाइनों की मदद से हिन्दी के टाइप और पूरी पंक्यिँ डालने की सुविधा ने भी प्रकाशन उद्योग को बढ़ावा दिया। अब आफसेट पद्धति से छपाई शीघ्र हो जाती है। दिल्ली में केन्द्र सरकार के हिन्दी निदेशालय एवं वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के केंद्रीय कार्यालय होने के कारण उनके समस्त तकनीकी प्रकाशन स्वतः ही उपलब्ध हो रहे है। इस सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा सन् 1865 ई0 में प्रकाशित ‘वृहत प्रशासन शब्दावली’ और ‘विधि शब्दावली’ के नाम रेखांकित करने योग्य हैं।

उल्लेखनीय है कि सन् 1979 में संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के सभी प्रश्नपत्रों के लिए हिन्दी तथा अष्टम सूची में उल्लिखित अन्य भारतीय भाषाओं को माध्यम के रूप में अपनाने की सुविधा दे दिए जाने के कारण हिन्दी को वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा के रूप में विकसित करने की दिशा में विभिन्न स्तरों पर ठोस प्रयास होने लगा। इसी क्रम में भारत सरकार द्वारा सन् 1850 ई0 में वैज्ञानिक शब्दावली मंडल की स्थापना की गयी। इसने दस वर्ष की अवधि में हिन्दी में तीन लाख वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्द तैयार किए जिन्हें सन् 1961 में केंन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से ‘पारिभाषिक शब्द संग्रह’ के रूप में प्रकाशित किया गया। इसी वर्ष अक्टूबर 1961 ई0 में केंन्द सरकार ने ‘वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग’ का गठन किया जो विज्ञान की सभी शाखाओं से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण एवं प्रकाशन कर चुका है।

इस दिशा में नित्य नवीन अपेक्षाओं के अनुरूप उपयुक्त शब्दावली के निर्माण में पूरी तन्मयता से लगा हुआ है। इस सम्बन्ध में यह भी द्रष्टव्य है कि तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा रक्षा, डाक-तार विभाग, रेलवे आदि से सम्बन्धित शब्दावलियों के अतिरिक्त वनस्पति विज्ञान, प्राणि विज्ञान और भू-विज्ञान सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दकोष भी तैयार कराये गये हैं। आयोग के तत्वाधान में ही रूड़की व पंतनगर जैसे चयनित विश्वविद्यालयों में अलग-अलग प्रकोष्ठ स्थापित किये गये। इनके सहयोग से आयुर्विज्ञान जैसे अनुप्रयुक्त (applied) विज्ञानों से सम्बन्धित तकनीकी शब्दकोश (अठारह हजार शब्द) तैयार कराये गये। इसके अतिरिक्त हिन्दी माध्यम से पशु चिकित्सा और भेषजी आदि के शिक्षण हेतु पुस्तकें भी प्रकाशित करायी गयी हैं। आयोग द्वारा ‘ज्ञान सिंधु गरिमा’ और ‘विज्ञान सिंधु गरिमा’ नामक दो पत्र भी निकल रहे हैं। अन्य जो महत्वपूर्ण दायित्व आयोग द्वारा निभाया जा रहा है उनमें हिन्दी भाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को हिन्दी की नवनिर्मित व वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली से परिचित कराने के लिए समय-समय पर अलग-अलग स्थानों पर विभन्न गोष्ठियों का आयोजन विशेष उल्लेखनीय है। इससे व्यवहारिक और अनुप्रयोग तक स्तर पर वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के रूप में हिन्दी के विकास प्रक्रिया को निश्चित रूप से बल मिलेगा।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में संघीय सरकार को हिन्दी के प्रचार-प्रसार का दायत्व तथा विकास का दिशा संकेत देते हुए कहा गया है- ‘‘जहाँ आवश्यक अथवा वांछनीय हो वहाँ उसके (हिन्दी के) शब्द भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करना संघ का कर्त्तव्य होगा।’’ इसी दिशा निर्देश के आधार पर संघ शिक्षा मंत्रालय ने ‘केन्द्रीय शिक्षा परामर्श मंडल’ की सिफारिश पर 1850 में एक ‘वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली बोर्ड’ का गठन किया।

सन् 1852 में शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत एक ‘हिन्दी-अनुभाग’ की स्थापना की गयी। इस अनुभाग द्वारा तकनीकी शब्दावली के कइ र् संग्रह तैयार किये गये और उनकी प्रामाणिकता की पुष्टि के लिए विषयानुसार अलग-अलग विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया। कार्य विस्तार होने के कारण हिन्दी अनुभाग को हिन्दी प्रभाग का दर्जा दे दिया गया जिसके अन्तर्गत हिन्दी के वैज्ञानिक व तकनीकी भाषा के रूप में विकास के लिए विधि स्तरों पर बहुआयामी योजनाएँ हाथ में ली गयीं जिनमें नागरी टंकण यंत्र के मानक कुंजीपटल के निर्माण और वर्तनी के मानवीकरण की प्रक्रिया भी शामिल थी।

इस विषय में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रस्थान बिन्दु था 1 मार्च 1960 को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना। इसे सर्वप्रथम वैज्ञानिक शब्दावली और पारिभाषिक कोश के निर्माण का कार्य सौंपा गया। हिन्दी अनुभाग और हिन्दी प्रभाग द्वारा संरक्षित जो तीन लाख पारिभाषिक शब्द विषयानुसार अलग-अलग संग्रहों के रूप में छप चुके थे उन्हीं को 01 अक्टूबर 1961 में गठित वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग ने समेकित रूप से एक लाख प्रविधियों वाले पारिभाषिक शब्द संग्रह नाम से प्रकाशित किया।

प्रारंभ में विधि सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दावली का कार्य शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय कर रहा था। बाद में यह कार्य विधि मंत्रालय को सौंप दिया गया। इसी प्रकार ‘राजभाषा विभाग’ के कार्य कलाप जब गृह मंत्रालय के अधीन आ गये तो इसी के तत्वाधान में ‘केंद्रीय अनुवाद व्यूरो’ की स्थापना की गयी तथा प्रशासनिक साहित्य के अनुवाद का दायित्व उसे दिया गया। केंद्रीय हिन्दी निदेशालय ने विभिन्न पारिभाषिक शब्दकोश तैयार कराने के अतिरिक्त विविध भारतीय भाषाओं में अन्तःसम्बन्ध स्थापित करने के लिए अनेक द्विभाषी और त्रिभाषी कोश भी तैयार कराये हैं जिनकी संख्या दो दर्जन से अधिक है। इसी प्रकार ‘हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ भाषा कोश’ सम्बन्धी योजनान्तर्गत हिन्दी-अरबी-हिन्दी-चीनी, हिन्दी-फ्रांसीसी एवं हिन्दी-स्पेनी आदि कोश नागरी लिपि में तैयार कराये गये हैं।

भाषाविज्ञान से भाषा-शिक्षण को संबद्ध कर जैसे लाभ उठाया जाना चाहिए, वैसे लाभ नहीं उठाया गया है। भाषाशिक्षण की कई शाखाएं हैं और यह शिक्षण- प्रविधियों के अंतर्गत भी है। इस रूप में ‘भाषाविज्ञान’ को ‘भाषा शिक्षण’ से संबद्ध करने की और भाषाविज्ञान से लाभ उठाने की आवश्यकता है। डॉ0 रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव इस दिशा में आगे बढ़ रहे थे, किन्तु असमय में उनका निधन हो गया। उन्होंने ‘भाषा शिक्षण’ पर स्वतंत्र पुस्तक लिखी है। उसका प्रकाशन 1979 ई. में (प्रथम संस्करण) हुआ है। दूसरा संस्करण 1992 ई. में प्रकाशित हुआ। दूसरे संस्करण के ‘दो शब्द’ के अंतर्गत डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव विषय की महत्ता ज्ञापित करते हुए लिखते हैं- ‘‘शिक्षार्थी केंद्रित होने के कारण भाषाशिक्षण की धुरी आज भाषा अर्जन और भाषा अधिगम के सद्धांत बन गये हैं। साथ ही भाषा अध्ययन के क्षेत्र में उसकी प्रकार्यात्मक और संप्रेषणात्मक दृष्टि ने रूप रचना और व्याकरणिक व्यवस्था को अपना साधन बना लिया है। आज हम भाषिक क्षमता के साथ-साथ संप्रेषणपरक दक्षता की बात करते हैं। परिवर्तन की इन दिशाओं ने भाषाशिक्षण की इधर कई नयी विधियों को जन्म दिया है।

सस्यूर ने भाषाओं के अध्ययन के दो आधार माने हैं। वे हैं- (1) समकालिक या संकालिक (Synchronic) और (2) ऐतिहासिक (Diachronic) । उनका मानना है कि दोनों ही प्रकार का अध्ययन अलग-अलग है। समकालिक या संकालिक अध्ययन भाषा की व्यवस्था को बतलाने वाला होता है। भाषा की मानक-स्थिति क्या है? उसका स्वरूप क्या है? यह सब बतलाना संकालिक अध्ययन का काम है। इसके अंतर्गत भाषा का व्याकरण प्रधान रूप से रहता है। व्याकरण के आधार पर ही भाषा के विधान को, उसके नियमों को जाना जा सकता है। डॉ. रामविलास शर्मा ने ‘पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद’ (1994 ई. में प्रकाशित) पुस्तक लिखी है। यह पुस्तक ऐतिहासिक भाषाविज्ञान पर नया प्रकाश डालती है। इसकी प्रस्तावना में डॉ. शर्मा ने लखा है-

  "सरस्वती भारत के प्राचीन इतिहास की कालविभाजक रेखा है। आर्य आक्रमण सिद्धान्तवादियों के लिए उसे लांघ पाना संभव नहीं है।"

इधर प्रायः सभी हिन्दी भाषी राज्यों की विभिन्न अकादेमी , संस्थान और प्रकाशन विभाग हिन्दी को वैज्ञानिक व तकनीकी भाषा के रूप में समृद्ध करने के लिए असंख्य महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित कर चुके हैं। कहने का आशय है कि आज हिन्दी वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा के रूप में विकसित हो चुकी है और यह प्रक्रिया अनवरत चल रही है। इस संदर्भ में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की पत्रिका ‘विज्ञान-प्रगति’, विज्ञान परिषद प्रभाग की ‘अनुसंधान’ पत्रिका एवं राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘रसायन समीक्षा’ आदि पत्रिकाओं का योगदान उल्लेखनीय है।

हिन्दी को वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा के रूप में विकसित करने तथा समृद्ध बनाने की दृष्टि से आज सर्वाधिक महत्व सूचना प्रौद्योगिकी का है। इस संदर्भ में आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा मुद्रित पत्रकारिता संबंधी विवेचना उल्लेखनीय है। अब इसमें सूचना क्रांति के विस्फोट के रूप में कम्प्यूटर, ई-मेल, इंटरनेट वेबसाइट आदि को शामिल किया जा सकता है। समस्याएँ व समाधान-उपर्युक्त विस्तृत विवेचना के अनुसार हिन्दी के वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के विकसित और समृद्ध होने के बावजूद भारतीय जन-मानस में हिन्दी की अक्षमता अपूर्णता और तकनीकी न्यूनता का भ्रम अधिकाधिक बढ़ते जाना निःसंदेह आश्चर्य और चिन्ता का विषय है। विडम्बना यह है कि जिन विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में कभी बड़े जोर-जोर से हिन्दी माध्यमों से विभिन्न विषयों-विशेषतः वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों की शिक्षण योजनाएँ शुरू की गयी थीं वहाँ भी अब अंग्रेजी माध्यम को अनिवार्य समझा जाने लगा है। यही स्थिति विभिन्न संस्थानों और कार्यालयों में हिन्दी के अनुप्रयोग की है। इसके अनेक कारण देखें जा सकते हैं-

(1) इस समस्या को शिक्षित समुदाय या कर्मियों द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है तथा हिन्दी माध्यम या प्रयोग का जिक्र आते ही नाक भौंह सिकोड़ना एक फैशन बन गया है।

(2) इसका एक प्रमुख कारण विभिन्न संचार माध्यमों जिनमें इलेक्ट्रानिक मीडिया, मल्टी मीडिया आदि द्वारा जाने अनजाने अन्तर्राष्ट्रीयतावाद का नारा देकर भारतीय युवाओं में हीनता की भावना उत्पन्न किया जाना तथा उन्हें यह समझाया जाना कि अंगरेजी के बगैर बेहतर रोजगार संभव नहीं है।

उपर्युक्त दोनों समस्याओं के मूल में देश, समाज व शिक्षा जगत के कर्णधारों का प्रमाद है जिन्हें राजनैतिक लाभ व आर्थिक लाभ की पूर्ति के स्वार्थ में युवाओं को ठोस व मजबूत वैचारिक आधार उपलब्ध कराने की फुर्सत नहीं है।

(3) इसका एक और प्रमुख कारण यह भी है कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों के विभिन्न विशेषज्ञों और शब्द-अर्थ को मर्मज्ञ भाषाविदों में परस्पर कोई तालमेल नहीं है। इन दोनों के तालमेल के अभाव में हिन्दी में या तो बहुत क्लिष्ट तकनीकी साहित्य तैयार हो रहा है अथवा अधकचरा और अर्थच्युत शब्द कौतुक चल रहा है।

(4) इसमें भी अधिक दोष हिन्दी साहित्य के कथित सर्जकों का है। युवा शब्दकार प्रायः तुक जोड़ने, कहानियाँ गढ़ने और संवाद रचने में तो व्यस्त हैं, हिन्दी के माध्यम से नयी पीढ़ी को वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने की रूचि या फिक्र किसी काे नहीं। साथ ही जिस हिन्दी के शब्द-भण्डार की बदौलत वे अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के महल खड़े करने में लगे हैं उसी को दीन-हीन बताने में उन्हें थोड़ा भी संकोच नहीं है।

व्याकरणाचार्य पतंजलि ने कहा है कि "सच्चा लेखक कभी भाषा-शास्त्रियों के पास जाकर यह न हीं कहता कि पहले मुझे शब्द दो, तब मैं पुस्तक लिखूँगा।"वह तो शिक्षार्थियों के लिए जब लिखना शुरू करता है तो शब्द अपने आप उसके पास मंडराने लगते हैं- पहचानने और चुनने का विवेक तथा धीरज होना चाहिए।

(5) इस मार्ग में एक बड़ी बाधा हमारी उधारजीविता की प्रवृत्ति भी है। कुछ भारतीय लेखकों व मनीषियों को हर बात में अंगरेजी का मुँह ताकने की आदत पड़ गयी है। वे यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी की अट्टालिका भी लैटिन की नींव पर खड़ी है तो फिर हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिए संस्कृत का आधार ग्रहण करने में संकाेच क्यों?

यहाँ एक रोचक उदाहरण देखा जा सकता है। भारत को कोई भी सामान्य व्यक्ति संख्याओं को दस गुना बढ़ाकर अधिकाधिक गिनती तक ले जाना जानता है। हजार, दस हजार से लेकर नील, पद्म, महापद्म, शंख, महाशंख (सौ शंख) इत्यादि। बाइस अंकों की या संख्या भारतीयों के लिए अनजानी नहीं। इसके विपरीत अंग्रेजी में केवल करोड़, विलियन (दस अरब) तथा ट्रिलियन (दस खरब) अस्तित्व आया। इस लिहाज से भी अंग्रेजी हिन्दी से पीछे है। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों, खगोलशास्त्रियोंं और नक्षत्रविदों की प्रतिभा का बहुत कुछ अंश अब भी हि न्दी को संस्कृत से प्राप्त है। उसके रहते हिन्दी को अकिंचन मानना गलत है।

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि हिन्दी को अवैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के रूप में विकसित करने के मार्ग में कई समस्याएँ होने पर भी स्थिति एकदम निराशाजनक नही है।

सन्दर्भ

1.डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव, भाषाशिक्षण, वाणी प्रकाशन, 21-ए, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002, 1992

2.डॉ. रामविलास शर्मा, पश्चिम एशिया और ऋग्वेद, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली वि.वि. पृ. 18

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हिन्दी विकिपीडिया १४००० अंक पार

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खुशी की बात है कि हिन्दी विकिपीडियानिरन्तर प्रगति कर रही है। पिछले हफ्ते यह १४००० लेखों का आंकड़ा पार कर गयी।

दूसरी सबसे उत्साहजनक बात यह है कि बहुत तेजी से लोग इससे जुड़ रहे हैं। मेरा अनुमान है कि हर हफ्ते कोई २५-३० लोग औसतन जुड़ रहे हैं।

पर हिन्दीभाषियों और हिन्दी जानने वालों की संख्या उपरोक्त आंकड़ों से मेल नहीं खाती। इसमें बहुत अधिक वृद्धि होनी चाहिये।

आप भी हिन्दी विकिपीडिया से जुड़िये ना!

विकिपिडिया सम्पादन - बायें हाथ का खेल

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मिडिया साक्षरता

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आजकल मिडिया को लेकर सब लोग परेशान हैं। लोग मिडिया में - भ्रष्टाचार, पक्षपात, सनसनी फैलाना, अंधविश्वास को बढ़ावा देना, अनुपातहीनता, झूठीरिपोर्टिंग, आम जनता के मुद्दों की अनदेखी करने आदि सभी दुर्गुण देखने लगे हैं।

सूचना का उपयोग/उपभोग करने वाले हर व्यक्ति का सूचनासाक्षरहोना अत्यन्त आवश्यक है। मुझे पंचतन्त्र का एक सूत्र बहुत पसन्द है -

अज्ञातकुलशीलस्य वासो देयो न कस्यचिद्


(जिसका कुल और शील अज्ञात हो, उसको अपने घर रहने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।)

यह सूत्र भारतीय मिडिया पर भी लागू होता है। क्या आप भारतीयमिडियाकेस्वामित्वआदि के बारे में कुछ जानते हैं?

नीचे दिये हुए आंकड़े क्या कहते हैं? मुझे तो ऐसा लगता है कि भारत के अधिकांश मिडिया की लगाम अभारतीय या भारत-विरोधी हाथों में है। ऐसी दशा में इनसे क्या अपेक्षा कर सकते है?

(यह सामग्री मुझे अन्तरजाल से मिली है,
इसके बारे मेंमेरी खुद की जानकारी शून्य है)

"a) NDTV: Funded by Gospels of Charity in Spain
supports Communism. Recently it has developed a soft
corner towards Pakistan because Pakistan President has
allowed only this channel to be aired in Pakistan .

b) CNN-IBN: 100% Funded by Southern Baptist Church
with its branches in all over the world with HQ in US.
The Church annually allocates 800 Million Dollars for
Promotion of its channel.

c) TIMES GROUP LIST: TIMES OF INDIA, MID-DAY,
NAV-BHARTH TIMES, STARDUST, FEMINA, VIJAYA TIMES,
VIJAYA KARNATAKA, TIMES NOW (24 hr News Channel) &
many more.

Times Group is owned by Bennet & Coleman. 80% of the
Funding is done by "WORLD CHRISTIAN COUNCIL", and
balance 20% is equally shared by an Englishman and an
Italian.

D) STAR TV: Is run by an Australian, who is supported
by St.Peters Pontificial Church Melbourne.

E) HINDUSTAN TIMES: Owned by Birla Group, but hands
have changed since Shobana Bhartiya took over.
Presently it is working in Collobration with Times
Group.

F) The Hindu: A English Daily, started over 125 years
has been recently taken over by Joshua Society, Berne
, Switzerland .

G) INDIAN EXPRESS: DIVDED INTO TWO GROUPS. THE INDIAN
EXPRESS & NEW INDIAN EXPRESS (SOUTHERN EDITION). Acts
Ministries has major stake in the Indian express and
later is still with the Indian counterpart

H) EENADU : Still to date controlled by an Indian
named Ramoji Rao

I) Andhra Jyothi : The MUSLIM PARTY OF HYDERABAD known
as (MIM) along with a Congress Minister Has purchased
this Telgu daily very recently.

j) The Statesman: It is controlled by Communist Party
of India

k) Kairali TV: It is Controlled by Communist party of
India (Marxist)

l) Mathrabhoomi: leaders of Muslim league and
Communist Leaders have major investment.

m) Asian Age & Deccan Chronicle: Is owned by a Saudi
Arabian Company with its chief Editor M.J.AKBAR." Unquote



अपने लिये फाण्ट परिवर्तक प्रोग्राम स्वयं लिखें

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यूनिकोड के फायदे अब सब स्वीकारते हैं, सब जानते हैं। ऐतिहासिक रूप से कम्प्यूटर पर हिन्दी (और अन्य गैर-रोमन लिपीय भाषायें) बड़े टेढ़े-मेढ़े रास्ते तय करते हुए आयी। इसमें 'लिगेसी'फाण्ट का प्रयोग भी एक मुकाम था। शुशा, कृतिदेव, संस्कृत९९ और न जाने कितने फाण्ट प्रयोग होते थे। जितने लोग, उतने फाण्ट।


अच्छी बात ये है कि इन फाण्टों में ही बहुत सारी हिन्दी की उपयोगी सामग्री (कन्टेन्ट) सम्हालकर रखा हुआ है। जिनको यूनिकोड में बदकर अमर किया जा सकता है।



किसी भी हिन्दी फाण्ट परिवर्तक के मुख्यत: तीन भाग होते हैं -

१) पुराने (लिगेसी) संकेतों को संगत हिन्दी यूनिकोड संकेतों से प्रतिस्थापित करना

२) छोटी इ की मात्रा का स्थान बदलना

३) आधा र (अक्षरों के उपर लगने वाला र) का स्थान बदलना

कहने की जरूरत नहीं कि जो भी प्रोग्राम लिखा जायेगा, उसे इन तीनों कार्य करने पड़ेंगे।



पुराने संकेतों को यूनिकोड संकेतों से बदलना:

हर लिगेसी फाण्ट में हिन्दी के स्वरों, मात्राओं एवं ब्यंजनों के लिये कुछ कोड प्रयोग किया जाता है, जो अन्तत: एक संकेत के रूप में दिखता है। विभिन्न लिगेसी फाण्टों में ये संकेत कुछ समान होते हैं और ज्यादातर भिन्न। उदाहरण के लिये संस्कृत९९ मे लिगेसी फाण्ट के कुछ संकेत और यूनिकोड के संगत संकेत नीचे दिये गये हैं:

"k", "K", "Š", "o", "O", "g", "G", "¸"
"", "क्", "क्", "", "ख्", "", "ग्", ""



छोटी इ की मात्रा की समस्या :

लिगेसी फान्टों में अधिकतर छोटी इ की मात्रा को निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है:

दिनके लिये संस्कृत९९ में idn लिखा गया होगा.

क्लिष्टको ikl;qलिखा गया होगा।

ध्यान दें कि छोटी इ की मात्रा के लिये i
का प्रयोग किया जा रहा है और यह जिस वर्ण पर लगनी है उसके ठीक पहले या उसके एक स्थान और पहले (दूसरे उदाहरण में) हो सकती है। जबकि यूनिकोड में छोटी इ की मात्रा के लिये आने वाला कोड , उस व्यंजन के कोड के बाद आता है।

दिन = द का कोड +
छोटीइ की मात्रा का कोड + न का कोड

स्थिति = स का कोड + हलन्त का कोड (स को आधा करने के लिये) + थ का कोड + छोटी इ की मात्रा का कोड + त का कोड + छोटी इ की मात्रा का कोड



आधे र की समस्या :
आधे र की समस्या, छोटी इ की समस्या के तरह ही, किन्तु इसके
ठीकउल्टा है।

उदाहरण :
तर्कका संस्कृत ९९ मे कोड tkRहै;
कर्ताका संकेत ktaRहै।

स्पष्ट है कि लिखने में जिस ब्यंजन के उपर आधा र लगाया जाता है, उसके बाद, या उस पर लगी मात्राओं के बाद आधे र का संकेत आता है।

किन्तु यूनिकोड में आधे र की स्थिति अलग है। उच्चारण की दृष्टि से आधा र, उस ब्यंजन के पहले आता है, जिसके उपर इसे लगाया जाता है। इसी लिये यूनिकोड में आधे र का कोड भी उस ब्यंजन के पहले आता है।

उदाहरण :

तर्क = त का यूनिकोड + आधे र का यूनिकोड + क का यूनिकोड

कर्ता = क का यूनिकोड + आधे र का यूनिकोड + त का यूनिकोड + आ की मात्रा का यूनिकोड


संस्कृत९९ को यूनिकोड में बदलने का प्रोग्राम का सोर्स कोड इस फाइलको वर्डपैड में खोलकर या किसी अन्य तरीके से देखा जा सकता है।


और भी कई मुद्दे हैं जैसे - लिगेसी में किस अक्षर के लिये कौन सा संकेत प्रयुक्त हुआ है, कैसे जानें ; एच टी एम एल और जावास्क्रिप्ट के किन कमाण्डों का प्रयोग किस काम के लिये करें; प्रोग्राम का फ्लोचार्ट कैसा होगा .. आदि मुद्दे अगली पोस्टों में विचारे जायेंगे।




तुष्टीकरण : कैसे-कैसे रूप !

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हज सबसिडी

समान नागरिक संहिता लागू करने में आनाकानी और इसका विरोध

उत्तरी राज्यों में उर्दू को द्वितीय राजभाषा बनाना

उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति

इफ़्तार पार्टियाँ

मुसलमान राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति/राज्यपाल

अल्पसंख्यक आयोग

अल्पसंख्यकों के लिये विशेष आरक्षण

अल्पसंख्यकों को विशेष ऋण सुविधा

मदरसों को विशेष सुविधायें

अल्पसंख्यकों के लिये विशेष छात्रवृत्ति

सच्चर कमीटी

अफजल की फांसी पर चुप्पी

काश्मीर में भारत-विरोधी तत्वों के साथ नरमी

तसलीमा का बंगाल से निषकासन

तस्लीमा की पुस्तकों पर प्रतिबन्ध

विदेश नीति में इरान का समर्थन

इजराइल के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने से संकोच

धारा ३७०

पोटा हटाना

अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को विशेष सुविधा

उर्दू अखबारों को प्रोत्साहन

बंगलादेशियों को भारत में प्रश्रय

मुस्लिम लीग़ के साथ सत्ता-समझौता

---....---
... आदि, आदि

हिन्दी विकिपीडिया ने १५००० का अंक पार किया

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हिन्दीविकिपेडियाने आज १५०००लेखों का आंकड़ा पार कर लिया। यह हिन्दी प्रेमियों के लिये खुशी की बात है। कुछ ही दिन हुए हम सभी हिन्दी विकिपेडिया को १००००का अंक पार करते देखने की लालसा लिये हुए थे!


यूनिकोडने विश्व की सभी भाषाओं की लिपियों को कम्प्यूटर पर समान धरातल प्रदान करके रोमन लिपि का कम्प्यूटर पर बर्चस्व तोड़ा। तदुपरान्त विकिपीडियाने सभी भाषाओं में ज्ञान सामग्री सृजित करने का समान अवसर प्रदान करके भाषायी साम्राज्यवाद को समाप्त करने का धरातल तैयार किया है। हिन्दी विश्व के सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली तीन भाषाओं में एक है। समयदान देकर हिन्दी विकिपीडिया को समृद्ध बनाना हम सबका कर्तव्य है। हिन्दी विकिपीडिया एक महान अवसर लेकर प्रस्तुत हुआ है; हमे इसे व्यर्थ नहीं होने देना चाहिये।


आइये, अपनी रुचि के विषयों और उपविषयों पर लेख लिखकर हिन्दी और हिन्दुस्तान का मार्ग प्रसस्त करें!

गाँवों के लिये डाक्टरों का 'निर्माण'

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हाल में ही भारत के चिकित्सकों एवं चिकित्सा-छात्रों द्वारा गाँवों में काम करने का विरोध किया गया। यह अत्यन्त निन्दनीय है और इसका विरोध होना चाहिये। किन्तु इससे अधिक आवश्यकता भविष्य में चेतने और सम्यक योजना बनाने की है कि ऐसी स्थिति ही निर्मित न होने दी जाय।


इस सन्दर्भ में मेरे कुछ सुझाव हैं:

०) ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों का बाकायदा 'ग्रामीणविद्यालय'के रूप में चिन्हित किया जाय।

१) इन विद्यालयों में पढ़े विद्यार्थियों को मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिये कम से कम ५०% काआरक्षणहो।

२) इस आरक्षण के विरुद्ध उनसे शपथ-पत्रभरवालियाजायकि उन्हे ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम १० वर्ष तक सेवा देनी होगी।

३) ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के बदले उन्हें 'असुविधाबोनस'दिया जाय।

४) इसी तरह की व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ाने के लिये अध्यापकों के लिये की जा सकती है।


मेरा मानना है कि भारत में सबसे पहले दो ही 'वर्ग'हैं: शहरीऔरग्रामीण। अन्य वर्ग इसके बाद आते हैं।



काव्यकारी में सहायक दो प्रोग्राम

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कम्प्यूटर प्रोग्रामों के रूप में भाषा तकनीक सभी भाषाओं की तरह-तरह से सहायता कर रही है। इससे भाषाओं में नये आयाम जुड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि भाषा तकनीक के क्षेत्र में अपार संभावनायें हैं और इन सम्भावनाओं के फलीभूत होने पर भाषा-संसार में क्रान्तिकारी परिवर्तन होंगे और भाषा-संसार की कायापलट हो जायेगी।


इसी को ध्यान में रखते हुए मैने भी दो प्रोग्राम विकसित किये हैं। पहला प्रोग्राम देवनागरी के शब्दों को बायें से दायें या दाये से बायें क्रम में शाटन (सार्टिंग) करता है। इसमें दायें से बायें क्रम में शाटन कवियों के लिये बहुत उपयोगी और सहायक होगा। इसकी सहायता से तुकान्त शब्दों की सूची बनायी जा सकती है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि कविता में तुकान्त शब्दों का कितना महत्व है।


दूसरा प्रोग्राम किसी कविता की प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या की गणना करने का काम करता है। मात्राओं की संख्या के सही होने से ही कविता में गेयता आती है। दोहा, चौपाई, सोरठा, कुंडलिया आदि छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत होती है। जैसे ही मात्रा कम या अधिक होती है, कविता खटकने लगती है। इस प्रकार यह प्रोग्राम फटाफट मात्राओं की गणना करके अमूल्य समय की बचत कर सकती है और उन चरणों की ओर इशारा कर सकती है जिनमें संशोधन की आवश्यकता है।


निवेदन है कि हिन्दी-प्रेमी इन प्रोग्रामों को परखें और अपना सुझाव और प्रतिक्रिया दें।

देवनागरी क्रमक

मात्रा गणक



मात्रा गणक प्रोग्राम का फ्लो-चार्ट

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उच्हिन्दीचिट्ठाकारमेरेमात्रा-गणकप्रोग्रामकेकलन-विधि (अल्गोरिद्म)केबारेमेंजिज्ञासुहोसकतेहैंउनकेलिएनीचेइसप्रोग्रामकाफ्लो-चार्टप्रस्तुतहै:







हे गुलाम, चिरंजीव !

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कहतेहैंकिखोटासिक्काज्यादाचलताहै; अंग्रेजीइसकासबसेसटीकप्रमाणहै

इसलेखमेंमैनेअंग्रेजीकीमहानकमियोंकासंक्षिप्तपरिचयदेनेकाप्रयासकियाहैभारतकाभीअंग्रेजीकेजालसेबाहरनिकलनाबहुतजरूरीहैइसीउद्देश्यकीप्राप्तिकेलियेयहसंकलनकियागयाहै



अंग्रेजीभाषाकीमहानकमियाँ:
(English sucks. There's no denying it.)

) स्पेलिंगकीसमस्या

) उच्चारणकीसमस्या

) एक्सेंटकीसमस्या

) जितनेअंग्रेजउतनीबोलियाँ (dilects)

) अंग्रेजीमुहावरोंकीसमस्या (idioms and phrases)
एकगैर-अंग्रेजीभाषीयदिपूरीडिक्शनरीभीरटलेतोभीमुहावरोंसेभरीअंग्रेजीसुनकरबगलीझांकनेकेलिए मजबूरहोसकताहैइसकाकारणहैकिमुहावरोंकाअर्थउनशब्दोंकेअर्थसेकोईसम्बन्धनहींरखताजिनसे मिलकरवहमुहावराबनाहुआहै

) एकविचारकेलियेकईशब्द, कईविचारोंकेलियेएकहीशब्द

7) कठिनशब्दावलीकीसमस्या
( बेसिकइंग्लिश ,
प्लेन इंग्लिश , सिम्प्लिफ़ायड इंग्लिश )

8) कठिनग्रामरकीसमस्या




अंग्रेजीस्पेलिंगकेदोष

एकवर्ण, अनेकध्वनियाँ ( उच्चारण)
ononce - only - woman women worry
[wunce] [oanly] [wooman] [wimmen] [wurry]


एकध्वनिकेलियेअनेकवर्ण
peep - leap, people, here, weird, chief, police,me,ski,key;


इसकारणइंग्लिशजैसेलिखीहैवैसेपढ़ीनहींजातीऔरजैसेबोलीजातीहैवैसेलिखीनहींजाती(यास्पेलनहींकीजाती)। अंग्रेजीकोपढ़पानेकीमध्यमदर्जेकीदक्षताप्राप्तकरनेकेलियेहीलगभग३७००शब्दोंकीउटपटांग स्पेलिंगरटनीपड़तीहै



अंग्रेजीस्पेलिंगकेदुष्प्रभावऔरहानियाँ:

) स्पेलिंगरटनेमेंसमयकीबर्बादी

) डिक्शनरियोंपरअनावश्यककागजऔरपैसेकीबर्बादी

) उच्चारणबतानेकेलियेअलगसेव्यवस्थाकरनीपड़तीहै; जैसे, किसीअन्यलिपि (जैसेआइपी) का सहारालेनापड़ताहैकिन्तुयहाँभीकोईमानकनहींहैअधिकांशब्रिटिशशब्दकोश IPA काप्रयोगकरतेहैं, किन्तुअमेरिकनडिक्शनिरियाँअपनेअलगहीपद्धतिकाअनुसरणकरतीहैं

) हालहीमेंकियेगयेकुछसर्वेऔरअनुसंधानयहसाबितकरतेहैंकिअंग्रेजीस्पेलिंगकीदूरूहता, यूकेऔरयूएसमेंनिरक्षरताकामुख्यकारणहै

) दूसरेअल्फाबेटमेंलिखेजानेवालीभाषाओंकोलिखने-पढ़नेकीमूलचीजेंसीखनेमेंजितनासमयलगताहै , उससेलगभगतीनगुनासमयउतनीहीअंग्रेजीसीखनेमेंएकएकमध्यमबुद्धिकाअंग्रेजी -भाषीबच्चेको लगानापड़ताहै। (
Seymour, British Journal of Psychology, 2003)

) पिछलेपाँचदशकोंमेंअंग्रेजी-भाषीदेशोंअनेकसर्वेहुएहैंइनसभीकेनिष्कर्षइससेयहबातस्थापितहोगयीहैकिलगभगआधेअंग्रेजी-भाषीलिखनेमेंअत्यधिककठिनाईअनुभवकरतेहैंयहाँतककिलगभगबीस प्रतिशतअंग्रेजी-भाषीठीकसेपढ़नेमेंभीअक्षमहैंयहबातसन२००५मेंयूकेकीहाउसआफकामन्सकी शिक्षापरस्थापितएकसमितिकीरिपोर्टकहतीहै

) एकमोटेअंदाजकेअनुसारस्पेलिंगकीदूरूहताकेकारणकेवलशिक्षाकेक्षेत्रमेंप्रतिवर्षलगभग१०० बिलियनडालरकीबर्बादीहोतीहैइसमेंबार-बारडिक्शनरीकेदर्शनकीकीमत, गलतस्पेलिंगकेकारणबर्बादहुएकागजकीकीमतऔरस्पेलिंगकेवजहसेउत्पन्नहुईनिरक्षरताकी (अगण्य) कीमतशामिलनहींहै





अंग्रेजीस्पेलिंगसुधारकेलियेप्रस्तावितकुछउपाय

) शेवियन (Shavian) लिपि , क्विकस्क्रिप्ट

) फोनेटिकरोमन (Phonetic Roman)

) विस्तारितलैटिन (Extended Latin)

) देवग्रीक (Devagreek)
हालहीमेंअन्तरजालपरदेवनागरीकेबारेमेंकुछजानकारीखोजतेसमयदेवग्रीकनामकएकनयेकांसेप्टसेपरिचयहुआदेवग्रीक (Devagreek) , अंग्रेजीस्पेलिंगमेंसुधारकेलियेप्रस्तावितएकवर्णमालाहैजोरूप-रंगमेंरोमनसेमिलती-जुलतीहैकिन्तुदेवनागरीकीध्वन्यात्मकवरणमालासेअनुप्राणितहै

) स्पेलिंगकासरलीकरण (simplified spelling)


इतनीकमियोंकेबावजूदअंग्रेजीकाभारतमेंचलन पञ्चतंत्र की इनसूक्तियोंकोसार्थकसिद्धकरताहै:

इहलोकेहिधनिनां, परोऽपिस्वजनायते
स्वजनोपिदरिद्राणां, सर्वदादुर्जनायते।।

( इससंसारमेंपरायाभीधनियोंकाअपनाबनजाताहैदरिद्रोंकेस्वजनभीसदादुर्जनजैसाव्यवहारकरतेहैं


पूज्यतेयद्अपूज्योऽपि, यद्अगम्योऽपिगम्यते
वंद्यतेयद्अवंद्योऽपि , प्रभावोधनस्य।।

(धनकाइतनाप्रभावहैकिजोअपूज्यहैवहभीपूजाजाताहै; जिसकेपासनहींजानाचाहिये, उसकेपासभीलोगजातेहैं; जोवंदनाकरनेलायकनहींहैउसकीभीवन्दनाकीजातीहै)




कुछमहत्वपूर्णलिंक :

१) English sucks. There's no denying it.

२) Does English have an alphabet?

) English Spelling Reform Links

४) English spelling reform Link page

५)
The Strange English Language: Funny Things about English

६) English is very strange.

७) The strange English language

टिडलीविकी और हिन्दी-जगत के लिये उसकी उपयोगिता

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विकीपीडिया एक महान और मुक्तज्ञानकोष है, किन्तु उसके साथ समस्या यह है कि बिना अनतरजाल से जुड़े उसका उपयोग नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त आजकल कम्प्यूटर पर विश्वकोष आ गये हैं जिनकी उपयोगिता पुस्तक रूप में प्रिन्ट की गयी इनसाइक्लोपीडिया से कहीं बहुत अधिक है। दुर्भाग्य से अभी तक हिन्दी में आफलाइन उपयोग के लिये कोई विश्वकोष उपलब्ध नहीं है जबकि अंग्रेजी में एनकार्टा और अन्य अनेक कम्प्यूटरी विश्वकोष उपलब्ध हैं।

मेरे विचार से हिन्दी में आफलाइन उपयोग के लिये विश्वकोष की कमीम को टिडलीविकी नामकविकि पूराकर सकती है। ऐसा इसलिये सम्भव है क्योंकि इसे आनलाइन और आफलाइन दोनो ही उपयोग किया जा सकता है। साथ ही एक विकी में समाहित लेखों को दूसरी विकी में आसानी से कापी करके बड़ा ज्ञानकोषबनाया जा सकता है। इस प्रकार बहुत से लोगों के योगदान को मिलाकर एक वृहद विश्वकोष या बहुत से लघुकोष बनाना असान काम है।

परिचय:

टिडलीविकी (Tiddlywiki) एक विकि है जो एक ही एचटीएमएल फाइल (CCS एवं जावास्क्रिप्ट सहित) में सब कुछ समेटे हुए होती है। विशेष बात यह है कि यह फाइल स्वयं सम्पादन-योग्य भी है। इस विकी को बिना अन्तरजाल से जुडे भी प्रयोग किया जा सकता है। जेरेमी रस्टन (Jeremy Ruston ) इसके रचनाकार हैं। इसे निजी नोटबुक के रूप मेंप्रयोग किया जा सकता है।

जब कोई इसे अपने कम्प्यूटर पर उतारकर (download) इसका उपयोग करता है तो यह प्रविष्ट की गयी नयी सूचना को हार्ड डिस्क पर जतन (save) कर सकती है। इसके लिये यह स्वयं अपने पुराने रूप को मिटाकर नये रूप में लिख (overwrite) लेती है।

टिडलीविकी का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इसके अनेक रुपान्तर (adaptations) मौजूद हैं। इसके लिये बहुत सारे 'प्लग-इन', मैक्रो आदि उपलब्ध हैं। टिडलीविकी का 1.2.23 संस्करण आने के बाद इसका रुपान्तर बनाने के लिये इसके कोड में परिवर्तन नहीं करना पडता बल्कि यह काम 'प्लग-इन'की सहायता से किया जाता है।

मुख्य विशेषताएँ

१) इसे इन्स्टाल नहीं करना पडता। यह प्रमुख आपरेटिंग सिस्टम्स (विन्डोज, लिनक्स, मैकिन्टोश) पर अधिकांश आधुनिक ब्राउजरों (फायरफाक्स, इन्टरनेट इक्सप्लोरर, ओपेरा आदि) को सपोर्ट करती है। इसका आकार (साइज) छोटा है। इसलिये इसे यह निजी चल विकी (portable personal wiki.) की तरह प्रयुक्त हो सकती है।

२) छोटा आकार (साइज) - आसानी से डाउनलोड/अपलोड किया जा सकता है।

३) मुक्तस्रोत (ओपेनसोर्स) - इसको अपनी आवश्यकता के अनुसार बदलकर उपयोग में लाया जा सकता है। इसी लिये इसके अनेकों परिवर्तित रूप (adaptations) बन गये हैं।

४) परम्परागत विकियों के विपरीत, मूल टिडलीविकी पूर्णतः क्लाएंट-साइड अनुप्रयोग है, इसलिये इसपर काम करने के लिये अन्तरजाल से जुड़े होना जरूरी नहीं है। (अब टिडलीविकी के ऐसे रूपान्तर भी आ गये हैं जो सर्वर-साइड अनुप्रयोग हैं।)

५) यह हाइपरटेक्स्ट एचटीएमएल फाइल है जिसे वेबसर्वर पर पोस्ट क्या जा सकता है; इमेल से किसी दूसरे को भेजा जा सकता है; पेन-ड्राइव पर भण्डारण किया जा सकता है; इसे अपलोड करके किसी समूह में या अन्त्तरजाल पर 'शेयर'किया जा सकता है।

६) इसकी रचना इस प्रकार की गयी है कि यह रेखीय, क्रमागत या हाइरार्किकल पठन के बजाय हाइपरलिंकिङ् पर आधारित अरेखीयपठन को प्रोत्साहित करती है।

७) स्वानुकूलन : टिडलीविकी को अपनी आवश्यकता के अनुरूप बनाना बहुत आसान है। टिडलीविकी के 1.2.22 संस्करण आने के बाद इसके रुपान्तर (adaptations) बनाना अब अत्यन्त सरल हो गया है। अब कोड में परिवर्तन के बजाय यह कार्य 'प्लग-इन'बनाकर किये जाते हैं।

८) टिडलीविकी मुख्यतः लघु सामग्री (माइक्रो-कन्टेन्ट) के लिये अधिक उपयुक्त है। विशाल सामग्री के लिये यह उतनी अच्छी नहीं है।

प्रमुख उपयोग

  • किसी उत्पाद, साफ्टवेयर आदि के लिये एक बढिया मैनुअल अथवा दस्तावेज प्रबन्धक (documentation manager) की तरह
  • इसकी सहायता से बेहतरीन प्रायः पूछे गये प्रश्न ( FAQ ) बनाया जा सकता है।
  • अपना निजी विश्वकोश या डिक्शनरी बनाने के लिये भी प्रयोग कर सकते है।
  • इसको शेष-कार्य (to do list) बनाने के लिये उपयोग किया जा सकता है। ( इसके लिये हर शेष-कार्य के लिये एक टिडलर (tiddlers.) बनाया जा सकता है।)
  • कुछ लोग इसे चिट्ठा (ब्लाग ) के रूप में उपयोग करते है।
  • कुछ लोग इसे वेबसाइट के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
  • यदि आपका डेस्कटॉप छोटे-छोटे टेक्स्ट फाइलों, चेतावनियों (रिमाइंडर्स) और नोट आदि से भरा हुआ है तो यह उन्हे सरलता से और बेहतर ढंग से स्टोर कर सकता है।


उपयोगी कड़ियाँ

हिन्दी विकिपीडिया १७००० लेखों के पार

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बहुत खुशी की बात है कि कुछ अत्यन्त समर्पित हिन्दी सेवियों के जबरजस्त योगदान के फलस्वरूप हिन्दी विकिपीडिया पर लेखों की संख्या १७००० को पार कर चुकी है। इसके साथ ही मौजूद लेखों में परिवर्तन एवं परिवर्धन भी किये गये। लेखों में पहले की अपेक्षा अधिक विविधता भी आयी है।

यदि हम सभी हिन्दी चिट्ठाकार अपने-अपने रुचि और विशेषज्ञता के विषयों पर पाँच-पाँच लेखों का भी योगदान करें तो हिन्दी में ज्ञान का यह मुक्त संग्रह और भी उपयोगी हो जायेगा। यदि हम गहन विचार करें तो पाएंगे कि अन्तत: हिन्दी विकिपीडिया पर संचित ज्ञान ही शाश्वत सिद्ध होगा और इसी लिये विकिपीडिया पर योगदान का महत्व सर्वाधिक है।

अन्त में यही आग्रह है कि आप भी हिन्दी विकिपीडिया पर योगदान करें ।


देवनागरी फाण्ट परिवर्तक

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  • Sil Converter : कृतिदेव, शुषा इत्यादि फ़ॉन्टों को यूनिकोड में 100% शुद्धता से परिवर्तित करने वाला कन्वर्टर (SIL द्वारा विकसित)
  • TBIL Data Converter : Transliteration between data in font/ASCII/Roman format in Office documents into a Unicode form in any of 7 Microsoft-supported Indian languages
  • Unicode Converter (Online) : Convertrs Some Hindi and Other Indian language fonts into Unicode. यह फॉयरफॉक्स के एक्सटेंशन (ऐड-आन) के रूप में उपलब्ध है।
  • Hindi Lekhak 4.17 - कृतिदेव एवं चाणक्य फॉण्ट हेतु ऑनलाइन टाइपिंग औजार एवं फॉण्ट परिवर्तक

फॉण्ट परिवर्तकों के बारे में अन्य जानकारी:

विकिपिडिया को संवारो, हिन्दी का भविष्य संवरेगा

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जरा सोचिये कि हिन्दी विकिपिडिया पर दस लाख लेख हो जांय तो क्या होगा? एक विद्यार्थी को आधुनिक से आधुनिक विषय पर जानकारी मिल जायेगी; कोई व्यक्ति किसी विषय पर पुस्तक रचना चाहेगा तो एक ही स्थान पर उसे सारी सामग्री हिन्दी में मिल जायेगी; किसी को कोई उपकरण स्वयं मरम्मत करना हो तो वह पढ़कर कर सकेगा; किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति उस रोग से सम्बन्धित सारी जानकारी अपनी भाषा में पा जायेगा ....


कहते हैं कि दूसरे भी उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करता है। गूगल हिन्दी का अनुवादक नहीं ले आता यदि उसे हिन्दी में कोई क्रियाकलाप नहीं दिखता। इसी तरह आने वाले दिनों में (और आज भी) भाषा की शक्ति उसके विकिपीडिया पर स्थिति से नापी जायेगी।


हिन्दी विकिपीडिया पर इस समय उन्नीस हजार से अधिक लेख लिखे जा चुके हैं। यह काफी तेजी से बहुत से भाषाओं को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गयी है। किन्तु अभी भी यह लगभग पचास भाषाओं से पीछे है। हिन्दी के बोलने और समझने वालों की संख्या को देखते हुए इसका स्थान प्रथम दस भाषाओं में होना ही चाहिये।


इस देश में आई आई टी जे ई ई में ढ़ाई-तीन लाख लोग भाग्य आजमाते हैं; कैट (CAT) में भी इसी के करीब लोग भाग्य आजमाते है; इन्दौर जैसे शहर में बीस लाख लोग बसते हैं.. ऐसे में दस लाख लेखों का योगदान कितना सरल काम हो सकता है? किसी समाज की सम्पन्नता में इस बात से सीधा सम्बन्ध है कि उस समाज के लोग सार्वजनिक कार्यों के लिये कितना समय और धन देते हैं। हमारी अनेकानेक समस्याओं का कारण हमारा सार्वजनिक हित के कार्यों की अनदेखी करते हुए निजी हित को सर्वोपरि रखना ही है।


इसलिये सभी हिन्दी-प्रेमी इस बात को समझें कि केवल कविता और शेर से हिन्दी का विकास नहीं होगा; केवल ब्लाग पर किसी राजनैतिक विषय पर दस लाइन लिखने से देश का हित नहीं होगा; केवल आलोचनात्मक भाषण से कुछ नहीं होगा। हमे अपनी भाषा को सारे तरह के ज्ञान-विज्ञान से सुसज्जित करना होगा - तभी हिन्दी और हिन्दुस्तान दोनो का कल्याण सुनिश्चित होगा।


कोई सम्माजशास्त्र के उपविषयों (टापिक्स) पर लिखे, कोई मनोविज्ञान के उपविषयों पर, कोई राजनीति-शास्त्र पर, कोई अर्थशास्त्र पर, कोई वाणिजय पर, कोई कला पर, कोई इतिहास , कोई विज्ञान, कोई स्वास्थ्य, कोई प्रौद्योगिकी, कोई साहित्य आदि पर। विकिपिडिया का काम दो-चार लोगों के भरोसे नहीं हो पायेगा, इसमें लाखों नहीं तो हजारों लोगों को अवश्य जुड़ना पड़ेगा।


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